जिससे भी पूछो कहता है हम तो गरीब आदमी हैं। ऐसा है क्या? बिहार की राजधानी पटना की बात थोड़ी अलग है। कुछ लोग हजारों-हजार देने को तैयार हैं पर कोई लेने वाला ही नहीं। पैसे देने को उल्टे कमीशन देने पर भी कोई हिम्मत ही नहीं जुटा रहा। कई ने तो पन्नी और बोरे में पैसे रखे हैं पर कोई लेता नहीं। दरअसल, बाजार में एक बार फिर से सिक्कों की भरमार होने से व्यापारी परेशान हैं। सिक्कों को बैंक द्वारा नहीं लिए जाने से व्यापारियों के समक्ष समस्या खड़ी हो रही है।

व्यापारियों का कहना है कि पांच-दस के सिक्के तो आम लोग ले भी लेते हैं। एक और दो का सिक्का मामूली राशि से ऊपर कोई नहीं लेता। इस कारण व्यापारियों की बड़ी राशि फंस जाती है। व्यापारियों का कहना है कि सिक्कों को जमा करने बैंक जाते हैं तो वहां भी दो, पांच और दस के सिक्कों को स्वीकार नहीं किया जाता है। सिक्कों के इकट्ठे होने से उनके कारोबार पर भी असर पड़ रहा है।

सिक्कों का संतुलन गया है बिगड़

पेपर एजेंट राजकुमार गुप्ता 50 वर्षों से चौक मोड़ पर अखबार का कारोबार करते हैं। वे बताते हैं कि पहले उनके पास जितने सिक्के आते थे लगभग उतने ही चले भी जाते थे। उनका कहना है कि पिछले कुछ महीनों से सिक्कों का संतुलन गड़बड़ा गया है। वे बताते हैं कि प्रतिदिन उनके पास 1500 रुपये के दो के सिक्के तथा 3000 रुपये के पांच और दस के सिक्के जमा हो जाते हैं। हॉकर या फिर ग्राहक 25 से 30 रुपये से अधिक का सिक्का नहीं लेना चाहते हैं। पन्नी और छोटे बारे में भरकर किसी भी बैंक में जाने पर वे सिक्का जमा नहीं करते हैं। कई बार तो छह प्रतिशत कमीशन देकर सिक्का के बदले नोट लेना पड़ता है।

दुकान में दस हजार का एक और दो का सिक्का पड़ा

लंगूर गली के किराना दुकानदार अरुण झा बताते हैं कि उनके दुकान में लगभग दस हजार का एक और दो का सिक्का पड़ा है। फुटकर ग्राहकी में दिनभर रुपये के साथ-साथ सिक्के भी आते हैं। कभी-कभी तो दिनभर की बिक्री में नोट से अधिक सिक्के हो जाते हैं। एजेंसी से लेकर बैंक तक कोई भी सिक्कों में पेमेंट नहीं लेता है। वे बताते हैं कि जैसे-तैसे सिक्कों को ग्राहकों को देकर काम चलाता हूं। फिर भी सिक्के इकट्ठे होते जा रहे हैं।

Input: Dainik Jagran

Muzaffarpur Now – Bihar’s foremost media network, owned by Muzaffarpur Now Brandcom (OPC) PVT LTD