हनुमान जन्मोत्सव आज 8 अप्रैल को मनाया जा रहा है. चैत्र मास की पूर्णिमा को हर साल हनुमान जी के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चैत्र महीने में पूर्णिमा के दिन पवनपुत्र हनुमान ने जन्म लिया था. बजरंग बली की मां का नाम अंजनी था. उनके पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे. मान्यता है कि बजरंगबली अपने भक्तों पर आने वाले हर संकट को हर लेते हैं, इसी वजह से उन्हें संकटमोचक कहा जाता है. वायु देव को भी बजरंग बली का पिता माना जाता है. आइए जानते हैं हनुमान जी के जन्म की कथा…….
हनुमान जन्मोत्सव कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवराज इन्द्र की स्वर्ग सभी में पुंजिकस्थला (पुंजिकस्थली) नाम की एक अप्सरा था. पुंजिकस्थला का स्वभाव काफी चंचल था. एक बार की बात है जब ऋषि दुर्वासा देवराज इन्द्र की सभा में पहुंचे (ऋषि दुर्वासा अपने भयंकर क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे). उसी समय ऋषि पुंजिकस्थला बार-बार अपना स्थान बदलकर कभी अंदर आती तो कभी बाहर जाती. ऋषि दुर्वासा को अप्सरा की इस चंचलता पर क्रोध आ गया. इसलिए उन्होंने अप्सरा को श्राप दिया कि- जा, तू वानरी बन जा. पुंजिकस्थला इसपर दुखी होकर ऋषि से क्षमा मांगने लगी. इसपर ऋषि ने उसे वरदान दिया कि वो जब चाहे अपनी इच्छानुसार मानव रूप में आ सकती है. कुछ वर्षों बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया. उनका नाम अंजनी रखा गया. विवाह योग्य होने पर पिता ने अपनी सुंदर पुत्री का विवाह महान पराक्रमी कपि शिरोमणी वानरराज केसरी से कर दिया. इस रूप में पुंजिकस्थली माता अंजनी कहलाईं.
एक बार घूमते हुए वानरराज केसरी प्रभास तीर्थ के निकट पहुंचे. उन्होंने देखा कि बहुत-से ऋषि वहां आए हुए हैं. कुछ साधु किनारे पर आसन लगाकर पूजा अर्चना कर रहे थे. उसी समय वहां एक विशाल हाथी आ गया और उसने ऋषियों को मारना प्रारंभ कर दिया. ऋषि भारद्वाज आसन पर शांत होकर बैठे थे, वह दुष्ट हाथी उनकी ओर झपटा. पास के पर्वत शिखर से केसरी ने हाथी को यूं उत्पात मचाते देखा तो उन्होंने बलपूर्वक उसके बड़े-बड़े दांत उखाड़ दिए और उसे मार डाला. हाथी के मारे जाने पर प्रसन्न होकर ऋर्षियों ने कहा, – वर मांगो वानरराज. केसरी ने वरदान मांगा, – प्रभु , इच्छानुसार रूप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान पुत्र आप मुझे प्रदान करें. ऋषियों ने ‘तथास्तु’ कहा और वो चले गए.
एक दिन माता अंजनी, मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर पर जा रही थी. वे डूबते हुए सूरज की खूबसूरती को निहार रही थीं. अचानक तेज हवाएं चलने लगीं. और उनका वस्त्र कुछ उड़-सा गया. उन्होंने चारों तरफ देखा लेकिन आस-पास के पृक्षों के पत्ते तक नहीं हिल रहे थे.
उन्होंने विचार किया कि कोई राक्षस अदृश्य होकर धृष्टता कर रहा. अत: वे जोर से बोलीं, कौन दुष्ट मुझ पतिपरायण स्त्री का अपमान करने की चेष्टा करता है? तभी अचानक पवन देव प्रकट हो गए और बोले, देवी, क्रोध न करें और मुझे क्षमा करें.
आपके पति को ऋषियों ने मेरे समान पराक्रमी पुत्र होने का वरदान दिया है. उन्हीं महात्माओं के वचनों से विवश होकर मैंने आपके शरीर का स्पर्श किया है. मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा. उन्होंने आगे कहा- भगवान रुद्र मेरे स्पर्श द्वारा आपके गर्भ में उत्पन्न हुए हैं जोकि आगे जाकर आपके पुत्र रूप में प्रकट होंगे.