मां पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित है। चंपावत जिले की तहसील टनकपुर के पास अन्नपूर्णा शिखर पर 5,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर 108 सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि यहां पर माता का वक्ष गिरा था।
टनकपुर शहर से पूर्णागिरी मंदिर के आधार तल की दूरी 21 किलोमीटर है। मंदिर के आधार तल से श्रद्धालुओं को तीन किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। सिर्फ पैदल चलने में सक्षम लोग ही मंदिर तक पहुंच सकते हैं। पार्किंग से लेकर अगले दो किलोमीटर तक मंदिर के पैदल यात्रा मार्ग में दोनों तरफ दुकानें, खाने-पीने के रेस्टोरेंट और रहने के लिए छोटी-छोटी धर्मशालाएं बनी हैं।
पदयात्रा की शुरुआत करते ही सबसे पहले भैरव मंदिर आता है। काफी श्रद्धालु भैरव मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद आगे की यात्रा शुरू करते हैं। अच्छा होगा कि आप छाता, टॉर्च, रेनकोट आदि लेकर माता के दरबार तक पदयात्रा करें। तकरीबन एक किलोमीटर चलने के बाद एक मंदिर आता है, उसका नाम है झूठे का मंदिर। कहा जाता है कि एक श्रद्धालु ने माता का मंदिर यहां निर्मित कराया, पर उसने सोने की जगह नकली सुनहले रंगों का इस्तेमाल किया। लोग इस मंदिर के प्रति आस्था रखते हैं, पर यह झूठे के मंदिर के नाम से ही जाना जाता है।
तकरीबन दो किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में मां काली का मंदिर आता है। वापसी में काफी श्रद्धालु इस मंदिर में भी आस्था से पूजन करते हैं। तकरीबन तीन किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलते हुए आप मां पूर्णागिरी के दरबार में पहुंच जाते हैं। होली के बाद आने वाली नवरात्रि से माता पूर्णागिरी का मेला शुरू हो जाता है।
यह मेला तीन महीने तक चलता है। यानी अप्रैल, मई और जून महीने में। तब माता पूर्णागिरी के दरबार में श्रद्धालओं की भीड़ उमड़ती है।
कैसे पहुंचें:
उत्तर प्रदेश के बरेली से टनकपुर रेल या बस से जा सकते हैं। टनकपुर इस मार्ग का आखिरी रेलवे स्टेशन है। टनकपुर शहर से पूर्णागिरी मंदिर तक के लिए जीप मिलती है।
माधवी रंजना