एक अक्टूबर से कई बड़े बदलाव होने जा रहे हैं. इन बदलावों से आपकी जेब और दैनिक जीवन पर सीधा-सीधा असर पड़ेगा. इन तमाम बदलावों में एक बड़ा बदलाव इंश्योरेंस सेक्टर में होने जा रहा है.

अगले महीने से हेल्थ इंश्योरेंस (Health Insurance) का स्वरुप पूरी तरह बदलने जा रह है. एक बार हेल्थ इंश्योरेंस की पॉलिसी बेचने के बाद बीमा कंपनी मनमर्ज़ी से क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पाएंगी. कई अहम बीमारियों के लिए पॉलिसी लेने के बाद वेटिंग पीरियड भी घटेगा.

आपने लगातार 8 साल तक अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रीमियम भरा है तो कंपनी किसी भी कमी के आधार पर क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पाएगी.

हेल्थ कवर में ज्यादा से ज्यादा बीमारियों के लिए इलाज का क्लेम मिलेगा. हालांकि, इसका असर प्रीमियम की दरों में इजाफे के तौर पर भी दिख सकता है.

इंश्योरेंस सेक्टर में क्या होगा बदलाव

– बीमारियों के कवरेज का दायरा बढ़ेगा.

– सभी कंपनियों में कवर के बाहर वाली स्थाई बीमारियां समान होंगी.

– कवर के बाहर वाली स्थाई बीमारियों की संख्या घटकर 17 रह जाएगी.

– अभी किसी पॉलिसी में एक्सक्लूजन 10 हैं तो 17 होने पर प्रीमियम घटेगा.

– अगर अभी पॉलिसी में 30 एक्सक्लूजन हैं तो 17 होने पर प्रीमियम बढ़ेगा.

– नए प्रोडक्ट्स में 5 से 20 परसेंट तक प्रीमियम बढ़ने की संभावना.

– मानसिक, जेनेटिक बीमारी, न्यूरो संबंधी विकार जैसी गंभीर बीमारियों का कवर मिलेगा.

– न्यूरो डिसऑर्डर, ऑरल केमोथेरेपी, रोबोटिक सर्ज़री, स्टेम सेल थेरेपी का भी कवर शामिल.

प्री-एग्जिस्टिंग की शर्त

– 48 महीने पहले डॉक्‍टर की बताई गई कोई भी बीमारी को पॉलिसी के तहत प्री-एग्जिस्टिंग.

– पॉलिसी जारी होने के तीन महीने के भीतर लक्षण पर प्री-एग्जिस्टिंग बीमारी माना जाएगा.

– 8 साल तक प्रीमियम के बाद क्लेम रिजेक्ट नहीं होगा

– 8 साल पूरे होने के बाद पॉलिसी को लेकर कोई पुनर्विचार लागू नहीं होगा.

– 8 साल तक रीन्युअल तो गलत जानकारी का बहाना नहीं चलेगा.

अनुपात में कटौती नहीं होगी

– फार्मेसी, इंप्लांट और डायग्नोस्टिक एसोसिएट मेडिकल खर्च में शामिल नहीं होंगे.

– फार्मेसी, इंप्लांट और डायग्नोस्टिक से जुड़ा पूरा खर्च क्लेम में मिलेगा.

– एसोसिएट मेडिकल खर्च बढ़ने से क्लेम राशी में कटौती होती है.

– तय सीमा से ज्यादा रुम पैकेज में एसोसिएट मेडिकल खर्च पर क्लेम कटौती होती है.

– क्लेम में ICU चार्जेस के भी अनुपात में कटौती नहीं होगी.

कंपनी चुनने का अधिकार 

– एक से ज्यादा कंपनी की पॉलिसी होने पर ग्राहक के पास क्लेम चुनने का अधिकार.

– एक पॉलिसी की सीमा के बाद बाकी का क्लेम दूसरी कंपनी से मुमकिन.

– डिडक्शन हुए क्लेम को भी दूसरी कंपनी से लेने का अधिकार.

– 30 दिन में क्लेम स्वीकार या रिजेक्ट जरूरी.

– एक कंपनी के प्रोडक्ट में माइग्रेशन तो पुराना वेटिंग पीरियड जुड़ेगा.

– टेलीमेडिसिन का खर्च भी क्लेम का हिस्सा

– ट्रिटमेंट के पहले और बाद टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल

– OPD कवरेज वाली पॉलिसी में टेलीमेडिसिन का पूरा खर्च मिलेगा

– डॉक्टरों को टेलीमेडिसिन के इस्तेमाल की सलाह

– कंपनियों को मंजूरी नहीं लेनी, सालान सीमा का नियम लागू होगा.

Source : ZeeBiz

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