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11 मार्च को है भगवान शिव की उपासना का दिन महाशिवरात्रि, ऐसे करें उपवास और पूजा

इस बार महाशिवरात्रि का लाभ ज्यादा मिल पाएगा क्योंकि इस बार कई विशेष योग बन रहे हैं, जिसमें शिव योग भी बन रहा है. इस कारण पूजा अर्चना के विशेष लाभ होंगे. शिव योग में शिवरात्रि के मनाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और सभी कष्ट दूर होते हैं.
पूजा अर्चना के लिए निशिता काल विशेष तौर पर जाना जाता है जो 12 मार्च को 12:06 से 12:55 तक रहेगा.
अन्य पूजा के मुहूर्त इस प्रकार है-
रात्रि प्रथम प्रहर : 11 मार्च को सायं 06:27 मिनट से रात्रि 09:29 मिनट तक
रात्रि द्वितीय प्रहर : 12 मार्च को रात्रि 09:29 मिनट से 12:31 मिनट तक
रात्रि तृतीय प्रहर : 12 मार्च को प्रात: 12:31 मिनट से प्रात: 03:32 तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर : 12 मार्च को प्रात: 03:32 मिनट से 06:34 मिनट तक
ऐसे करें भोले की पूजा और अभिषेक
वैसे तो भोलेनाथ मन से जल चढ़ाने पर भी प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा अर्चना में आप कच्चा दूध,दही, शहद, धतूरे और भांग ऐसी कई चीजें चढ़ा सकते हैं.
पूजा अर्चना के समय ओम नमः शिवाय अर्थात पंचाक्षरी का जप करना चाहिए. शिव पंचाक्षरी इस तरह से होती है, जिससे ओम नमः शिवाय शब्द बना है जो शंकराचार्य जी ने दिया था.
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:।।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:।।
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:।।
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
द्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:।।
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे ‘न’ काराय नमः शिवायः।।
जब भी शिव पूजा करें तो इस शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं.
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चैत्र नवरात्र: कलश स्थापना आज, धार्मिक स्थल बंद होने के कारण घरों में 9 दिनों तक श्रद्धालु मां दुर्गा की आराधना करेंगे

चैत्र नवरात्र कलश स्थापन के साथ आज से शुरू हो जाएगा। वही इबादत का महीना रमजान भी (13 या 14) अप्रैल से शुरू हो रहा है। पिछले साल की तरह इस साल भी इन दोनों त्योहारों पर कोरोना का साया फिर से पड़ गया है।
धार्मिक स्थल बंद होने के कारण घरों में 9 दिनों तक श्रद्धालु मां दुर्गा की आराधना करेंगे। वही अकिदतमंद एक माह तक रोजा रख मस्जिद की जगह घर पर ही अल्लाह की इबादत करेंगे। करुणा कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए पंडित एवं मौलाना घरों में ही रह कर लोगों को पूजा और इबादत करने के लिए जागरूक कर रहे हैं।
पंडित वेद प्रकाश शास्त्री ने बताया कि श्रद्धालु मां दुर्गा के प्रति आस्था रखे और घर में ही आराधना करें। सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन का पालन कर समय के साथ अपने परिवार को भी संक्रमित होने से बचाएं।
कलश व पूजन सामग्री की खरीदारी में जुटे भक्त: भक्तों ने चैत नवरात्र को लेकर कलश पूजन सामग्री की खरीदारी सोमवार को जमकर की। शाम 7 बजे तक बाजार बंद होने के आदेश के कारण सुबह दुकान खुलते ही लोग खरीददारी के लिए पहुंच गए थे। साधारण की जगह डिजाइन कलश, दीया व चौमुख लोग पसंद कर रहे थे। मंदिर बंद होने से मां भगवती की प्रतिमाएं भी ली। इसके साथ चुनरी माला पूजन सामग्री की खरीदारी की।
Input: Dainik Bhaskar
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13 से 22 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र, जानिए क्या हैं पूजा के शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 13 अप्रैल से 22 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र पर्व मनाया जाएगा। इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं अनुष्ठानपूर्वक पूजा की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और दुर्गा महात्म्य का पाठ किया जाता है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है।
अश्व पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा :
आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिॢवद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि इस वर्ष मां दुर्गा अश्व पर सवार होकर आएंगी। उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यताओं अनुसार सृष्टि के आरंभ का समय चैत्र नवरात्र का पहला दिन माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना करने का कार्यभार सौंपा था। इसी दिन से कालगणना शरू हुई थी। रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं,शनि और मंगलवार को घोड़े पर, गुरुवार और शुक्रवार को डोला पर, बुधवार को नाव पर आती हैं। मां दुर्गा के हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है, घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है।
नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्ध मिलती है और यदि डोले पर आती है तो उस वर्ष में विभिन्न कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है। भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती है जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है। शनि और मंगल को पैदल जाती हैं जिससे विकलता की वृद्धि होती है। बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं। इससे वृष्टि वृद्धि होती है। गुरुवार को भगवती मनुष्य की सवारी करती हैं, जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है। इस प्रकार भगवती का आना जाना विभिन्न फल सूचक हैं।
चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ :
आचार्य चंदन ने बताया कि देवी भागवत पुराण के अनुसार चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ माना जाता है। देवी पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ से पूर्व अंधकार का साम्रज्य था। तब आदि शक्ति जगदंबा देवी अपने कूष्मांडा अवतार में भिन्न वनस्पतियों और दूसरी वस्तुओं को संरक्षित करते हुए सूर्यमंडल के मध्य में व्याप्त थीं। जगत निर्माण के समय माता ने ही ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव की रचना की थी। इसके बाद सत, रज और तम नामक गुणों से तीन देवियां लक्ष्मी,सरस्वती और काली माता की उत्पत्ति हुईं।
आदिशक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी ने इस संसार की रचना की थी। मां ने ही भगवान विष्णु को पालनहार और शिवजी को संहारकर्ता बनाया और सृष्टि के निर्माण का कार्य संपूर्ण हुआ। इसलिए सृष्टि के आरंभ की तिथि से नौ दिनों तक मां अम्बे के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।
इस दिन से ही पंचांग की गणना भी की जाती है। मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था। नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है।
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21 अप्रेल को मनाई जाएगी रामनवमी, कोरोना काल में मंदिरों में सोशल डिस्टेंस से होंगे कार्यक्रम

रामनवमी का पर्व मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्मदिवस के उपलक्ष में मनाया जाता है। रामनवमी के ही दिन भगवान विष्णु ने सातवें अवतार के रूप में जन्म लिया था। रामनवमी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन मनायी जाती है। जबकि इस दौरान चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक नवरात्रि भी मनायी जाती है और इस दौरान बहुत से लोग व्रत एवं उपवास भी रखते हैं।
रामनवमी का पर्व देश और दुनिया में सच्ची श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भगवान राम का प्राकट्य पुष्य नक्षत्र में दोपहर 12 बजे हुआ था। 21 अप्रेल बुधवार को उदय काल में पुष्य नक्षत्र रहेगा। रामजी के प्राकट्यकाल में दोपहर 12 बजे अश्लेखा नक्षत्र और मातंग योग विद्यमान रहेगा। रामनवमी के दिन अनेक स्थानों पर भजन-कीर्तन का भी आयोजन होता है लेकिन इस बार कोरोना के चलते सामूहिक तौर पर आयोजन नहीं होंगे। इस वर्ष मंदिरों में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए रामनवमी मनाई जाएगी।
रामनवमी पूजा मुहूर्त सुबह
11 बजकर 02 मिनट से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट तक है।
रामनवमी की पूजाविधि- रामनवमी के दिन सबसे पहले स्नान आदि करके पवित्र होकर पूजास्थल पर पूजन सामग्री के साथ बैठ जाएं।
– पूजा में तुलसीदल और कमल का फूल अवश्य होना चाहिए और इसके बाद आप श्रीरामनवमी की पूजा करें।
– खीर, फल-फूल को प्रसाद के रूप में तैयार करें।
– पूजा करने के बाद घर की सबसे छोटी महिला घर के सभी लोगों के माथे पर टीका करें और सभी लोगों का चरण स्र्पश कर आशीर्वाद प्राप्त करें।
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