हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 13 अप्रैल से 22 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र पर्व मनाया जाएगा। इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं अनुष्ठानपूर्वक पूजा की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और दुर्गा महात्म्य का पाठ किया जाता है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है।
अश्व पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा :
आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिॢवद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि इस वर्ष मां दुर्गा अश्व पर सवार होकर आएंगी। उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यताओं अनुसार सृष्टि के आरंभ का समय चैत्र नवरात्र का पहला दिन माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना करने का कार्यभार सौंपा था। इसी दिन से कालगणना शरू हुई थी। रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं,शनि और मंगलवार को घोड़े पर, गुरुवार और शुक्रवार को डोला पर, बुधवार को नाव पर आती हैं। मां दुर्गा के हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है, घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है।
नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्ध मिलती है और यदि डोले पर आती है तो उस वर्ष में विभिन्न कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है। भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती है जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है। शनि और मंगल को पैदल जाती हैं जिससे विकलता की वृद्धि होती है। बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं। इससे वृष्टि वृद्धि होती है। गुरुवार को भगवती मनुष्य की सवारी करती हैं, जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है। इस प्रकार भगवती का आना जाना विभिन्न फल सूचक हैं।
चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ :
आचार्य चंदन ने बताया कि देवी भागवत पुराण के अनुसार चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ माना जाता है। देवी पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ से पूर्व अंधकार का साम्रज्य था। तब आदि शक्ति जगदंबा देवी अपने कूष्मांडा अवतार में भिन्न वनस्पतियों और दूसरी वस्तुओं को संरक्षित करते हुए सूर्यमंडल के मध्य में व्याप्त थीं। जगत निर्माण के समय माता ने ही ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव की रचना की थी। इसके बाद सत, रज और तम नामक गुणों से तीन देवियां लक्ष्मी,सरस्वती और काली माता की उत्पत्ति हुईं।
आदिशक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी ने इस संसार की रचना की थी। मां ने ही भगवान विष्णु को पालनहार और शिवजी को संहारकर्ता बनाया और सृष्टि के निर्माण का कार्य संपूर्ण हुआ। इसलिए सृष्टि के आरंभ की तिथि से नौ दिनों तक मां अम्बे के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।
इस दिन से ही पंचांग की गणना भी की जाती है। मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था। नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है।