हर साल 15 जनवरी को आर्मी डे (Army Day) मनाया जाता है. दिल्ली कैंटोनमेंट के परेड ग्राउंड में आर्मी की परेड होती है. इस दिन आर्मी चीफ परेड की सलामी लेते हैं. ये गणतंत्र दिवस की परेड की तरह होता है. इस दौरान तीनों सेनाओं के प्रमुख मौजूद होते हैं. इस बार की खास बात ये है कि आर्मी डे के मौके पर देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत (Bipin Rawat) भी वहां मौजूद होंगे और परेड की सलामी लेंगे. बिपिन रावत ने 31 दिसंबर को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पदभार ग्रहण किया था.
15 जनवरी को क्यों मनाया जाता है आर्मी डे
15 जनवरी को देश का पहला भारतीय आर्मी जनरल मिला था. 15 जनवरी 1949 को जनरल केएम करियप्पा ने थलसेना प्रमुख का पदभार ग्रहण किया था. इसके पहले इस पद पर बिट्रिश सेना के अधिकारी तैनात थे. जनरल केएम करियप्पा ब्रिटिश कमांडर जनरल सर फ्रांसिस रॉबर्ट रॉय बुचर से थलसेना का प्रभार लिया था.
बुचर अंतिम कमांडर इन चीफ थे. वो 1 जनवरी 1948 से 15 जनवरी 1949 तक देश के कमांडर इन चीफ रहे थे. आजादी के बाद भी ब्रिटिश सेना के अधिकारी ही थल सेना के प्रमुख के पद पर थे. जनरल केएम करियप्पा के आर्मी चीफ बनने से पहले इस पद पर दो ब्रिटिश अधिकारी रह चुके थे. बुचर से पहले इस पद पर सर रॉबर्ट मैकग्रेगर मैकडोनाल्ड लॉकहार्ट इस पद पर रह चुके थे.
15 जनवरी 1949 को जनरल केएम करियप्पा ने कमांडर इन चीफ का पद संभाला. तब से हर साल 15 जनवरी को आर्मी डे के तौर पर मनाया जाता है.
जब केएम करियप्पा ने थलसेना का प्रभार लियापूरे देश के लिए ये गर्व का मौका था, जब किसी पहले भारतीय ने थलसेना की कमान अपने हाथ में ली थी. जनरल केएम करियप्पा को लोग प्यार से किपर कहा करते थे. जब वो भारत के पहले कमांडर इन चीफ बने, उनकी उम्र महज 49 साल की थी. वो पूरे चार साल तक आर्मी चीफ रहे. 16 जनवरी 1953 को वो रिटायर हुए.
जनरल केएम करियप्पा ने भारत-पाकिस्तान बंटवारे में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. दोनों देशों के बीच के सेटलमेंट में उनका अहम रोल था. जनरल केएम करियप्पा उस आर्मी सब कमिटी के भी हिस्सा थे, जिसने दोनों देशों के बीच सेना के बंटवारे का काम किया था.
जब पहली बार भारतीय थलसेना का गठन हुआ था
आधिकारिक तौर पर 1 अप्रैल 1895 को भारतीय थलसेना का गठन हुआ था. ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों को भारतीय थलसेना में शामिल किया गया था. उस वक्त इसे ब्रिटिश इंडियन आर्मी कहा गया. आजादी के बाद इसे ही नेशनल आर्मी कहा गया.
आजादी के बाद भी 1949 तक ब्रिटिश सेना के अधिकारी ही आर्मी चीफ के पद पर तैनात रहे. आजादी हासिल करने के करीब डेढ़ बरस बाद 15 जनवरी 1949 को जनरल केएम करियप्पा ने ब्रिटिश अधिकारी से भारतीय थलसेना का प्रभार लिया था.
जनरल केएम करियप्पा ने हासिल किया था सेना का सर्वोच्च पद
जनरल केएम करियप्पा इंडियन आर्मी के पहले भारतीय कमांडर इन चीफ तो बने ही उन्हें सेना के सर्वोच्च पद से भी नवाजा गया. भारतीय सेना ने उन्हें फील्ड मार्शल की पदवी दी. 14 जनवरी 1986 को जनरल केएम करियप्पा को फील्ड मार्शल की पदवी दी गई. ये सेना का सर्वोच्च सम्मान होता है.
अब तक के इतिहास में सिर्फ दो ही अधिकारियों को फील्ड मार्शल की पदवी दी गई है. पहली बार सैम मानेकशॉ को फील्ड मार्शल की पदवी मिली थी. उन्हें ये सम्मान जनवरी 1973 में दिया गया था. इसके बाद जनरल केएम करियप्पा को ये प्रतिष्ठा हासिल हुई.
जनरल केएम करियप्पा का जन्म 1899 में कर्नाटक में हुआ था. उनके पिता रेवन्यू अफसर थे. जनरल केएम करियप्पा सिर्फ 20 साल की उम्र में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में शामिल हो गए थे. वो अपने प्रतिभा के बल पर सेना के सर्वोच्च पद पर पहुंचे. 1947 के भारत पाक युद्ध में उन्होंने पश्चिमी बॉर्डर पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया था.