उगऽ हे सूरजदेव अरघ के बेरिया…, दर्शन देहू न अपार हे दीनानाथ…, मरबो रे सुगवा धनुष से…, कांचही बांस के बहंगिया..: जैसे लोकगीतों की गूंज अब पटना की फिजां में गूंजने लगी है। लोक आस्था का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल चतुर्थी 18 नवंबर नहाय-खाय से आरंभ हो रहा है। इसका समापन 21 नवंबर को होगा। छठ पर्व मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी मइया सूर्यदेव की बहन हैं। लोक मान्यता है कि छठ के दौरान भगवान सूर्य की उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं तथा परिवार में सुख, शांति व धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि 18 को रवियोग में नहाय-खाय से चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू हो रहा। इस महापर्व का समापन अति शुभाशुभ द्विपुष्कर योग में होगा। धार्मिक मान्यता है कि इस तिथि को गंगा स्नान मात्र से शरीर के सारे कष्ट विशेषकर त्वचा रोग का नाश हो जाता है।
छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को रवियोग में नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो रहा है। इस बार छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बन रहा है। पारिवार की सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पूरे विधि-विधान से छठ का व्रत करेंगी। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा है। वहीं शुक्रवार 20 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य पर सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। जबकि 21 नवंबर शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य पर सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ-साथ द्विपु
प्रत्यक्ष देव भास्कर को प्रिय है सप्तमी तिथि
प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं।
छठ महापर्व में सामग्री का विशेष महत्व
सूप, डाला- अर्घ्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का इस्तेमाल किया जाता है। सूप से वंश वृद्धि होती है और वंश की रक्षा होती है।
ईख- ईख आरोग्यता का घोतक है।
ठेकुआ- ठेकुआ समृद्धि का घोतक है।
ऋतुफल- ऋतुफल के फल से विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
Input: Live Hindustan