जिले में भूदान के तहत दान की गई 5646 एकड़ जमीन का हिसाब ढूंढ़े नहीं मिल रहा है। इनमें से करीब 350 एकड़ जमीन का तो कहीं अता-पता भी नहीं है। हाईकोर्ट के आदेश पर हो रहे सत्यापन के दौरान इसका खुलासा हुआ है। वर्ष 1956 में भूदान के तहत मिली जमीन के वितरण के बाद जब पर्चाधारी कब्जे के लिए गया तो उसे जमीन ढूंढ़े नहीं मिल रही है। पर्चाधारियों की पीढ़ी खप गई, लेकिन जमीन न होने के कारण उस पर कब्जा नहीं हो सका।
भूदान जांच कमेटी को जिले से जो रिपोर्ट भेजी गई है उसके मुताबिक जिले में भूदान यज्ञ के तहत कुल 11282 दस्तावेज तैयार हुए। इन दस्तावेजों के माध्यम से लोगों ने 5646 एकड़ 65 डिसमिल जमीन दान में दी। लेकिन, जांच के दौरान 8389 दस्तावेजों के 3459 एकड़ 49 डिसमिल जमीन की ही संपुष्टि हो पाई। जांच के क्रम में 2608 दानपत्र गलत पाए गए और इन्हें रद्द कर दिया गया। इन रद्द दस्तावेजों के तहत कुल 1004 एकड़ 56 डिसमिल जमीन दान दी गई थी। मामला यहीं नहीं रुका। दान दिए गए 285 मामलों में परिजनों ने कोर्ट में मामला दायर कर दिया। इसके तहत 1182.60 एकड़ जमीन का मामला कोर्ट में चल रहा है।भूदान कार्यालय कर्मी अब भी करीब 350 एकड़ जमीन नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। इनमें से बड़ी संख्या में वैसे मामले हैं, जिनमें जमीन दान में दी गई और उसे लाभार्थियों को आवंटित भी कर दिया गया। लेकिन, जब लाभार्थी जमीन पर कब्जा करने गए तो वह जमीन किसी और के वैध कब्जे में पहले से थी या फिर दी गई चौहद्दी के हिसाब से उस जमीन का नामोनिशन तक नहीं था। ऐसे लाभार्थी अब अपर समाहर्ता कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं और दान में मिली जमीन पर कब्जे की मांग कर रहे हैं।
नदी की निकली जमीन
वैशाली के घोटारो निवासी सुशीला देवी के दादा को भूदान में एक एकड़ 44 डिसमिल जमीन मिली। दान की गई जमीन राजेंद्र शर्मा के नाम की थी। दादा को पर्चा तो मिला, लेकिन जमीन नहीं मिली। अब जब सुशाला देवी भूदान कार्यालय व अपर समाहर्ता कार्यालय का दौड़ लगायी तो जमीन की सही चौहद्दी का पता लगा। चौहद्दी पता लगने के बाद जब सुशीला खुश होकर जमीन पर कब्जे के लिए गई तो पता चला कि वह जमीन तो नदी की है। वह भूदान कार्यालय का चक्कर लगा रही हैं।
कार्यालय का लगा रहे चक्कर
कटरा प्रखंड के सिसवारा गांव निवासी बच्चू मांझी के दादा को भूदान की एक एकड़ तीन कट्ठा 10 धूर जमीन का पर्चा मिला। यह जमीन प्रशासन को भूदान के तहत मिली थी। बच्चू मांझी के दादा पर्चा मिलने के बाद जब जमीन पर कब्जे के लिए गए तो उस चौहद्दी की कोई जमीन दानदाता के नाम से नहीं थी। दान देने वाले सहदेव प्रसाद सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं और बच्चू मांझी के दादा व पिता भी गुजर गए। बच्चू मांझी अब उस जमीन के लिए भूदान कार्यालय से लेकर अपर समाहर्ता कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं।
भूदान के जमीन की जांच चल रही है। बड़ी संख्या में दानपत्र असंपुष्ट हैं व जमीन का सत्यापन नहीं हो पा रहा है। कुछ जमीन हैं जिनका चौहद्दी के मुताबिक अस्तित्व ही नहीं है, कुछ के वारिस ने दान से इंकार किया है। – जयप्रकाश यादव, डीसीएलआर पूर्वी
Source : Hindsutan