अगर आपका सनातन मान्यता और कालभैरव, देवो के देव महादेव में आस्था है तो ये स्टोरी आपके लिए ही है. हमसब जानना चाहते है आखिर मौत के ठीक पहले क्या होता है, ये कहानी पूरा पढ़े, सनातन मान्यता पर अधारित ये सत्य ही मानवता का सत्य है.

मृत्यु अटल सत्य है, कोई मनुष्य चाह कर भी इस सत्य को परिवर्तित नहीं कर सकता है, जितना ही मौत सत्य है उतने ही सत्य है शिव, वैसे शिव को हम नाम में नहीं बांध सकते, शिव अनंत है- बाकी सब देव है परन्तु शिव महादेव है, शिव रुद्रा है, शंकर , त्रिपुरारी, सोमनाथ , बैद्यनाथ , महाकाल, काल भैरवी, औघर और अनंत नामो से पहचाने जाने वाले आदिशक्ति ही इस ब्रह्मांड के निर्माता है.

महादेव की नगरी काशी – पौराणिक मान्यताओं का आनंदवन और वर्तमान समय में वाराणसी को हम मोक्ष धाम के नाम से जानते है, कहते है काशी में मरने वाले को स्वर्ग जाकर हरिचरणों मे जगह मिलता है, और इसी मान्यता के साथ अच्छे लोगो के साथ – साथ जिंदगी भर बुरा कर्म, ग़लत काम करने वाले लोग भी मरने के समय काशी पहुँचने लगे, जिनके कर्म भी बेकार है वो भी स्वर्ग जाने की चाह में काशी पहुँचने लगें, काशी की धरती जो शिव के प्रेम के लिये जानी जाती है , वहां पापी और अपराधी भी आने लगे, देवो के लिये ये चिंता का विषय बन गया. स्वर्ग और नरक में जाने का आधार शरुआत से ही मनुष्य का कर्म रहा है, स्वर्ग का द्वार उसके लिये ही है, जो जीवन में धर्म के मार्ग पर चला हो ऐसे में अधर्मी भी महत्वाकांक्षी हो गए और देवलोक की चाह में काशी पहुँचने लगे.

इन्ही समस्याओं का निवारण करते है महादेव के काल भैरव रूप, काल मतलब समय , शिव का वो रूप जो समय का देवता है, महादेव का महाकाल रुप भी समय के देवता है, समय अर्थात शिव, इसीलिये हम किसी के मृत्यु पर कहते है कि इसका समय खत्म हो गया, महादेव का काल भैरवी रुप इंसान के जीवन के साथ न्याय करता है, मनुष्य मृत्यु से ठीक 40 सेकेंड पहले भैरवी यातना से गुजरता है जिस 40 सेकेंड में मनुष्य के पिछले जन्म से लेकर इस जन्म और कई जन्मों के कर्म इस 40 सकेंड में उसके नज़रो के सामने तेज़ी से घूमते है. इतनी तेजी से सारे कर्म घूमने के कारण ये समय बेहद पीड़ादायी होता है, इसे भैरवी यातना कहते है, यातना अर्थात पीड़ा, कष्ट और दुख ये उसी समान है जैसी यातना मनुष्य नरक में झेलता है. इन 40 स्केंड में समय अपनी सबसे तेज गति से दौड़ता है और मरने वाला इंसान अपने सारे जन्मों के कर्म को इन्ही वक्तों में देख लेता है फिर जाकर प्राण शरीर को त्याग देता है. समय के इसी देवता को हम काल भैरव भी कहते है जो महादेव के ही रुप है, मृत्यु के पहले के ठीक पहले के ये चालीस सेकेंड सारे जीवन के कर्मो को अनन्त तेज गति से नज़रो के सामने रख देता है. मौत चाहे कैसी भी रही हो ये यातना हर किसी को झेलना है, चाहे आप किसी रोग से मरे या बूढ़े होकर मरे, हर स्तिथि में ये यातना ही मनुष्य शरीर के साथ न्याय करता है.

जीवन जीने के क्रम में हमें इन बातों का ध्यान रखना चाहिये कि मृत्यु एक दिन में नहीं आती मृत्यु रोज धीरे- धीरे आती है और एक दिन ये पूर्ण हो जाती है. मनुष्य के कर्म ही उसके भाग्य का निर्माता होता है. जीवन जीने के लिये आपको जो शरीर मिला है वो केवल आधारशिला है वास्तिवकता बस शिव है और जीवन जीने का उद्देश्य शिव भक्ति और सतकर्म है.

Abhishek Ranjan Garg

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...