केंद्र सरकार ने अगले दौर के निजीकरण के लिए 4 सरकारी बैंकों को चुना है. तीन सरकारी सूत्रों ने इस बारे में जानकारी दी है. बैंकिंग सेक्टर में सरकारी बैंकों के निजीकरण के इस फैसले को राजनीतिक रूप से जोख़िम भरा कदम माना जा रहा है, क्योंकि इससे लाखों नौकरियों पर असर पड़ सकता है. लेकिन मोदी सरकार अब बैंकों के निजीकरण के दूसरे चरण की शुरुआत करने की तैयारी में है. जिन चार बैंकों को निजीकरण के लिए चुना गया है, उनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया हैं. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में दो सरकारी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है. इनमें से दो बैंकों का निजीकरण वित्त वर्ष 2021-22 में किया जाएगा.

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अधिकारी ने बताया कि शुरुआती दौर में सरकार छोटे से लेकर मिड-साइज के बैंकों को निजीकरण के लिए चुन रही है. आने वाले साल में अन्य बड़े बैंकों के निजीकरण का फैसला भी लिया जा सकता है. हालांकि, देश के सबसे बड़े बैंक यानी भारतीय स्टेट बैंक में सरकार अपनी ​अधिकतम हिस्सेदारी बनाए रखेगी. SBI को एक तरह का रणनीतिक बैंक भी माना जाता है, जिसके जरिए केंद्र सरकार अपनी कई पहल को लागू करती है.

बैंकिंग सेक्टर को दुरुस्त करने की तैयारी में सरकार

इस मामले में वित्त मंत्रालय की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था में संकुचन ने भारत को बड़े रिफॉर्म्स करने के लिए मजबूर कर दिया है. पहले से फंसे कर्ज के बोझ से जूझ रहे बैंकिंग सेक्टर को दुरुस्त करने के लिए मोदी सरकार अब जरूरी कदम उठाने पर विचार कर रही है. कहा जा रहा ​है कि अगर बैंक महामारी के दौरान के लोन को भी शामिल करते हैं तो फंसे कर्ज के आंकड़े में भारी इजाफा हो सकता है.

सबसे पहले बैंक ऑफ महाराष्ट्र का निजीकरण संभव

आने वाले वित्त वर्ष में केंद्र सरकार केवल 4 बैंकों का ही निजीकरण करेगी. लेकिन, अधिकारियों ने सरकार को कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियन से सतर्क रहने को भी कहा है. बैंक ऑफ इंडिया में 50 हजार कर्मचारी काम करते हैं, जब​कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 33 हजार कर्मचारी हैं. इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कर्मचारियों की संख्या क्रमश: 26 हजार और 33 हजार है. यह आंकड़ा बैंक यूनियानों के अनुमान के मुताबिक है. सूत्रों का कहना है कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र का वर्कफोर्स कम है, इसलिए संभावित रूप से सबसे पहले इसी बैंक का निजीकरण किया जाएगा.

निजीकरण से पहले कई बातों का रखना होगा ध्यान

सरकार द्वारा बैंकों के निजीकरण और इंश्योरेंस समेत अन्य कंपनियों में ​हिस्सेदारी बेचने के विरोध में सोमवार को वर्कर्स ने दो दिवसीय हड़ताल शुरू की है. बता दें कि वास्तविक रूप से इस निजीकरण में कम से कम 5-6 महीने लगेंगे. कर्मचारियों की संख्या, ट्रेड यूनियनों का दबाव और राजनीति तनावों के आकलन के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा. ऐसे में इन फैक्टर्स को देखते हुए सरकार बैंकों के निजीकरण के फैसले में बदलाव कर सकती है.

बड़े बैंकों के निजीकरण से सरकार को होगा ज्यादा फायदा

सरकार को उम्मीद है कि भारतीय रिज़र्व बैंक बहुत जल्द इंडियन ओवरसीज बैंक पर लगे प्रतिबंधों को वापस लेगा. बीते कुछ समय में इंडियन ओवरसीज बैंक की स्थिति में सुधार देखने को मिला है. जानकारों का मानना है कि वित्तीय रूप से कमजोर और छोटे बैंकों को खरीदार भी नहीं मिलेंगे. लेकिन, मोदी सरकार बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब नेशनल बैंक जैसे बड़े बैंकों की भी बिक्री कर सकती है. छोटे बैंकों की बिक्री से सरकार को पर्याप्त रकम भी नहीं मिलेगी.

Source : News18

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