बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों का विशिष्ट व राजकीय पुस्तकालय श्री शारदा सदन पुस्तकालय जो तिरहुत प्रमंडल अंतर्गत तत्कालीन मुजफ्फरपुर और वर्तमान में वैशाली के लालगंज में स्थित है। इसकी स्थापना सन 1914 में विद्वान व क्रांतिकारी स्वामी सत्यदेव परिव्राजक ने हिंदी के विकास के लिए गठित हिंदी हितैषिणी संस्था के दूसरे हिस्से के रूप में किया था। उस वक्त स्वामी सत्यदेव परिव्राजक ने झोपड़ी में महज 150 पुस्तकों के साथ इसकी शुरुआत की थी। जो सन 1934 में आए महा विनाशकारी भूकंप में ध्वस्त हो गया। बाद में चंपारण यात्रा के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ यहां पहुंचे महात्मा गांधी ने पुस्तकालय के कायाकल्प के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद से 400 रुपये दिलवाया और उस पैसे से जो भवन बना उसका नाम श्री गांधी वाचनालय रखा गया। महात्मा गांधी ने यहां के विजिटर्स बुक में लिखा था कि मकान तो गिरा लेकिन विद्या का नाश नहीं हो सकता लोग पुस्तकालय में आए और विद्या ग्रहण करें। बताते चलें कि यहीं से क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तैयार किया करते थे।

बाद में स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ प्रसाद साह ने इसकी कमान संभाली थी। वर्तमान में यहां करीब 85 हजार पुस्तकें उपलब्ध हैं। यहां कई सारी पांडुलिपियों के साथ हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला ,मैथिली व प्राकृत समेत विभिन्न भाषाओं में विभिन्न विषयों पर आधरित पुस्तकें आज भी उपलब्ध हैं। इस पुस्तकालय में रामधारी सिंह दिनकर, जयप्रकाश नारायण, पूर्व मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह, जगदीश चंद्र माथुर, डॉ.राजेंद्र प्रसाद व खुद महात्मा गांधी दो-दो बार यहां पधार चुके हैं। वर्तमान में पुस्तकालय से लोगों को जोड़ने के लिए कई तरह के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इनमें क्विज प्रतियोगिता भी शामिल है। इतना वैभवशाली होने के बावजूद सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है।

सौजन्य: कुमार जय आदित्य

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