रंगों का महापर्व होली 10 मार्च को मनाई जाएगी, जबकि होलिका दहन नौ मार्च को होगा। आचार्य पीके युग ने कहा कि होलिका दहन नौ मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होगा जबकि होली 10 मार्च को मनाई जाएगी। होलाष्टक तीन मार्च से शुरू होगा।
बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार होली 10 मार्च दिन मंगलवार को उत्तर फाल्गुन नक्षत्र तथा त्रिपुष्कर योग में मनाई जाएगी। वहीं होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 9 मार्च को पूर्व फाल्गुन नक्षत्र में सोमवार को प्रदोष काल से लेकर निशामुख रात्रि 11 : 26 बजे तक जलाई जाएगी। होली का पर्व हिन्दू धर्म में काफी पवित्र माना गया है। इस दिन रंगों के आगे द्वेष और बैर की भावनाएं फीकी पड़ जाती है। रंगोत्सव का पर्व होली भारतीय सनातन संस्कृति में अनुपम और अद्वितीय है। यह पर्व प्रेम तथा सौहार्द्र का संचार करता है। होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा की जाती है। महिलाएं व्रत रखकर हल्दी का टीका लगाकर सात बार होलिका की परिक्रमा कर परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं और सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ संतान के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं।
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने पंचांगों के हवाले से बताया कि 09 मार्च को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त मिथिला पंचांग के अनुसार प्रदोष काल से मध्यरात्रि तक है। वहीं बनारसी पंचांग के मुताबिक प्रदोष काल से लिकर निशामुख रात्रि 11 : 26 बजे तक है। होलिका दहन के दिन प्रातः 06:08 बजे से दोपहर 12:32 बजे तक भद्रा है। इसीलिए होलिका दहन भद्रा के बाद किया जाता है। भद्रा को विघ्नकारक माना गया है। भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। पैराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम् भक्त पहलाद को होलिका की अग्नि भी नहीं जला पाई थी। होलिका की पूजा करते समय “ॐ होलिकायै नमः” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इससे अनिष्ट कारक का नाश होता है। दानवराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद उनका नाम जपने के बजाए भगवान श्रीहरि की पूजा और जाप करता है। इससे राजा ने क्रुद्ध होकर अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। चूंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि में उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा । लेकिन भक्त की अटूट भक्ति के कारण ठीक उल्टा हो गया। प्रह्लाद उस अग्नि से बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई।
होलिका भस्म का खास महत्व : होलिका दहन के भस्म को काफी पवित्र माना गया है। इस आग में गेहूं, चना की नई बाली, गन्ना को भुनने से शुभता का वरदान मिलता है । होली के दिन संध्या बेला में इसका टीका लगाने से सुख-समृद्धि और आयु के वृद्धि होती है। इसके साथ ही इस दिन ईश्वर से नई फसल की खुशहाली की कामना भी की जाती है। सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से अपनी काया हमेशा निरोगी रहती है । घर मे माता अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है।
राशि के अनुसार करें होलिका की पूजा : मेष और वृश्चिक राशि के लोग गुड़ की आहुति दें, वृष राशि वाले चीनी की आहुति दें, मिथुन और कन्या राशि के लोग कपूर की आहुति दें, कर्क के लोग लोहबान की आहुति दें, सिंह राशि के लोग गुड़ की आहुति दें, तुला राशि वाले कपूर की आहुति दें, धनु और मीन के लोग जौ और चना की आहुति दें, मकर और कुम्भ राशि के लोग तिल को होलिका दहन में डालें।