लीची मुजफ्फरपुर की आन, बाण और शान है। अगर आम फलो के राजा के रूप में जाना जाता हैं , तो लीची फलो की रानी के रूप में जनि जाती हैं। जैसे ही इन रसीली,स्वादिष्ट,और मीठी लीचियों की याद आती हैं, वैसे ही लोगो के मुँह में पानी आ जाता है। शाही,चाइना,क़स्बा और बेदाना कुछ लोकप्रिय प्रजातियां हैं, फलो की रानी-लीची के। लेकिन क्या कभी हमनें सोचा हैं की इस लीचियों के लिए किसानो को कितनी मेहनत करनी पड़ती हैं? केंद्र और राज्य सरकार भी इन लीची किसानो के लिए हमेशा मदद करने को आगे रहती हैं, लेकिन साक्षरता और ज्ञान के आभाव के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ बहुत सारे लीची किसान नहीं उठा पातें हैं। आज इस लेख के मध्यम से मैं, मनीष स्वरुप, कॉफ्रेट प्रोडक्ट्स के मार्केटिंग इकाई के द्वारा उन सारे किसानो को जैविक लीची की पैदावार , उनकी पौष्टिकता , सरकारी योजनाएं , लीची की पुख्यात मार्केटिंग और बिक्री के विषय से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा कर रहा हूँ। जिसके परिणाम स्वरुप लीची किसानो को कभी भी किसी तरह के तकलीफो का सामना न करना पड़े और न ही कभी अत्यधिक पैदावार से उनकी लीचियाँ बर्बाद हो।
लीची की जैविक खेती
मिटटी, पौधरोपण और शुरूआती प्रक्रिया: सामान्य पीएच, प्रचुर मात्रा में कार्बनिक पदार्थ और थोड़ी सी अम्लीयें। लीची पौधारोपण के समय मिटटी को ऐसे आकर दे की जल जमाव की समस्या न हो। पौधरोपण वर्गाकार प्रणाली में पौधों की दुरी ६*४ -८*४ मी० होनी चाहियें। और पौधरोपण के लिए गड्ढो का वर्गाकार बेसिन १मी *१मी *१ मी उपयुक्त हैं। लीची के लिए न ठण्ड और न ही गर्म जलवायु उपयुक्त हैं। तापमान ४० डिग्री से काम होनी चाहियें। माइकोराइजा पद्धति के अनुसार गड्ढे को ऊपर की मिट्टी में 20 किग्रा हरी कृमि खाद मिलाकर, जिसमें 2 किलो नीम/अरंडी/करंज केक और 200 ग्राम ट्राइकोडर्मा के साथ अच्छी तरह से सड़ा हुआ एफवाईएम और 10 किलो वर्मीकम्पोस्ट हो, भरना चाहिए। ये सारी प्रक्रिया बारिश के मौसम के दौरान, रोपण बोर्ड की मदद से गड्ढे के केंद्र में पौधारोपण किया जाना चाहिए ।
पौधरोपण के बाद देखभाल की पद्धति: अस्थायी छत बना कर पौधों की गर्म और ठण्ड से करें। पौधों के बेसिन को मूंग / ढैंचा की बुवाई और उसे काटकर मल्चिंग करके समृद्ध किया जाना चाहिए।
जल प्रबंधन: लीची के पौधों को जरुरत से अधिक जल होने पर पौधे बर्बाद हो जातें है। अन्तः एक आदर्श जल प्रबंध की जरुरत हैं, जिससे न ही अत्यधिक और न ही जलो की कमी के वज़ह से कोई तकलीफ हो जाएं। उचित वृद्धि के लिए प्रारंभिक पौध स्थापना चरण के दौरान बार-बार सिंचाई आवश्यक है और इसलिए शुष्क और गर्म महीनों के दौरान सप्ताह में दो बार और अन्य महीनों में सप्ताह में एक बार 4 तक सिंचाई करने का सुझाव दिया गया है।
पोषक तत्व प्रबंधन (खाद): जैविक खेती, पारंपरिक खेती से अलग हैं और इसके तहत पोषक तत्व प्रबंधन काफी विशिष्ट हैं। रासायनिक खेती में पौधों के लिए आवेदन के बाद शीघ्र प्रतिक्रिया होती हैं और अकार्बनिक उर्वरक दिया जाता हैं। लेकिन, जैविक खेती में खाद और खाद जैसे जैविक स्रोतों के माध्यम से पोषक तत्वों की पोषक तत्व प्रबंधन आवेदन द्वारा किया जाना अनिवार्य है। जैविक खाद धीमी गति से काफी असरदार परिणाम देती हैं,इसलिए जैविक खाद का प्रयोग पहले से अच्छी तरह से की जानी चाहिए। जैविक खाद के प्रभावकारिता में सुधार के लिए जैव-वर्धक और माइक्रोबियल मिश्रण जोड़ा जा सकता है। लीची की पोषक तत्वों की आवश्यकता बहुत अधिक होती है। लगभग 50 किग्रा गोबर खाद + 10 किग्रा वर्मीकम्पोस्ट + 3 किलो नीम केक + जैव-उर्वरक (एज़ोटोबैक्टर/एज़ोस्पिरिलम, पीएसबी @200 ग्राम प्रति वर्ष) प्रति वर्ष लीची के बाग लगाने के लिए उपयोग में पाया गया है। यह भी सुझाव दिया जाता है कि खाद को पेड़ की छंटाई और कटाई के बाद ही लगाया जाना चाहिए। बारिश के मौसम के दौरान, लीची बाग के पौधरोपण के समय ढैंचा (सेसबनिया एसपीपी) के साथ हरी खाद एक आदर्श विक्लप हैं क्योंकि यह मिट्टी की भौतिक गुणों और प्रजनन क्षमता (आदर्श क्षमता लीची के बागवानी के लिए मिटटी की 140-195 किग्रा एन / हेक्टेयर हैं ) में काफी मत्वपूर्ण किरदार निभाता हैं।
पौधों की संरक्षण: बाग स्थापना के प्रारंभिक वर्षों के दौरान, एक निश्चित आकार प्रदान करने के लिए पौधे का देखभाल आवश्यक है। शाखाओं के रोगग्रस्त और सूखे भागों को शुरुआत में ही काट देना चाहिए। रोगग्रसित शाखाओ को जल्द काट कर अलग कर देना चाहियें। इनके अलावा कैटरपिलर जैसे कीड़े और उनसे उत्त्पन्न होने वाले हानिकारक तत्वों से भी लीची के पेड़ो को संरक्षण की आवश्यकता होती हैं। पौध संरक्षण लीची की खेती का एक महत्वपूर्ण पहलू है। लीची एक बारहमासी फलदार वृक्ष है जो कीटों की संख्या से प्रभावित हैं। कीटो को अगर कम या नियंत्रित नहीं किया जाएं, तो ये काफी नुकसान का कारण बनती है। इसलिए, पूरे वर्ष भर निरंतर निगरानी और देखभाल की आवश्यकता है कीट आबादी को नियंत्रण में रखते हुए। अन्य कई फलों की तुलना में लीची के पौधे कम से कम बीमारियों से प्रभावित होते हैं। जैविक लीची उत्पादन में आवश्यक है कि पौधक पोषक तत्व आपूर्ति एवं सिंचाई के अलावा समय पर जांच के लिए सांकेतिक कार्रवाई क्षति से पहले कीट का निर्माण और उनका नियंत्रण मत्वपूर्ण हैं। प्रबंधन बगीचे की सामान्य देखभाल और समय पर कीटों के पलायन, बचाव और प्रतिरोध का विकास पौधों में तंत्र और निश्चित रूप से, कीटों का प्रबंधन सांस्कृतिक, यांत्रिक, जैविक नियंत्रण को अपनाने के माध्यम से जैव कीटनाशकों और वानस्पतिक दवाओं के उपाय और छिड़काव प्रबंधन शामिल है।
उपयुक्त अंतरफसलें: व्यापक दूरी पर स्थापना का लीची के बागान में प्रारंभिक अवस्था में पर्याप्त जगह होती है। इन व्यापक दूरी(इंटरस्पेस) का आर्थिक रूप से उपयोग किया जा सकता है। उपयुक्त अंतरफसलें जैसे कम अवधि की फल फसलें, सब्जियां और दलहनी फसलें (मूंग, लोबिया, सोयाबीन, मटर, चना, फैबा) बीन आदि) की खेती हो सकती हैं। जैविक उत्पादन प्रणाली में दलहनी फसल और ऐसी फसल को प्राथमिकता दी जाती है जिसमें सिंथेटिक आदानों के कम उपयोग की आवश्यकता होती है। जब लीची के वृक्ष पूर्ण विकसित हो , तब इन छाया प्रिय अंतरफसल को लगाना चाहिए लेकिन इन फसल की वकालत लीची के पौधों की कीमत पर होनी चाहिए अर्थात लीची के पेड़ो के ध्यान देना चाहिए न की इन अंतरफसलो की खेती पर।क्षेत्रीय वरीयता के साथ मिलकर लीची के पौधों के साथ तालमेल वाली फसलें प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
फलों का गिरना और टूटना: फलों का गिरना लीची के पेड़ो में प्रमुख विकारों में से एक है जो मुख्य रूप से फल लगने के तुरंत बाद होता है और मौसम की स्थिति और फसल प्रबंधन के आधार पर एक महीने तक जारी रहता है। वर्मीवाश का छिड़काव 100 मिली/लीटर की दर से साप्ताहिक अंतराल पर 2 से 3 बार फल आने पर करें, जो को लीची के फल गिरने को काफी कम कर देती है। फलों का टूटना लीची उत्पादकों के सामने आने वाली महत्वपूर्ण समस्याओं में से एक है। कम फलों के विकास के दौरान वायुमंडलीय आर्द्रता, उच्च तापमान और गर्म हवाएं, परिपक्वता अवस्था फलों के टूटने का पक्ष लेती है। एक बेहतर सूक्ष्म जलवायु के रखरखाव के माध्यम से इस समस्या को कम करने के लिए में सुधार पाया गया है !
पोस्ट हार्वेस्ट प्रबंधन (फल पैदा होने के बाद की व्यवस्था):
लीची जलवायु फल नहीं है इस कारण इनका शेल्फ जीवन खराब होता है और इसलिए दूर दराज़ में इनकी आपूर्ति के लिए पैकिंग और परिवहन से पहले विशिष्ट उपचार की आवश्यकता होती है।स्थानीय बाजारों के लिए, फलों को पकने की अवस्था में एकत्र किया जाना चाहिए, जबकि दूर के बाजार के लिए, फलों को लाल होने पर काटा जाना चाहिए। कटाई के बाद, फलों को उच्च वायुमंडलीय तापमान के तहत पकने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए ठंडे, सूखे और उचित हवादार कमरों में रखा जाना चाहिए। अगर लीची को कुछ घंटों के लिए भी धूप में रखा जाए तो गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है।
ग्रेडिंग अर्थात वर्गीकरण: फलों के आकार के अनुसार ग्रेडिंग अर्थात वर्गीकरण की जाती है। क्षतिग्रस्त, धूप में झुलसे और फटे फलों को पैकिंग से पहले छांट लिया जाता है।
भंडारण: फलों को कमरे के तापमान पर कुछ दिनों से अधिक समय तक संग्रहीत नहीं किया जा सकता है। यह अपना चमकीला लाल रंग खो देता है और कटाई के 2-3 दिनों के भीतर भूरा हो जाता है। परिपक्व लीची के फलों को 1.6 से 1.७ डिग्री C और सापेक्षिक आर्द्रता 85 से 90% के बीच तापमान पर 8 से 12 सप्ताह तक भंडारित किया जा सकता है।
पैकिंग: फलों को वर्गीकृत किया जाता है और लीची के पत्तों, नरम सूखी घास या केले के पत्तों के साथ उथले टोकरियों या टोकरे में पैक किया जाता है।
ट्रांसपोर्टेशन: फलों को टहनियों के साथ पैक किया जाता है और ट्रक द्वारा निकटतम शहरों के थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं तक पहुँचाया जाता है। पारगमन के दौरान फलों को कुचलने और त्वचा को नुकसान से बचाने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। लीची बहुत जल्दी खराब होने वाला फल है इसलिए इसकी मार्केटिंग जल्द से जल्द की जानी चाहिए।
फलो की बिक्री और निर्यात कैसे करें:
फलो की बिक्री के लिये आज भी अधिकतर किसान कमिसन एजेंट के ऊपर निर्भर हैं , लेकिन आज के विकासशील दौर में इंटरनेट सेवाओं के माध्यम से अगर किसान चाहें तो वो देश के अन्य राज्यों और अन्तर्राष्ट्रियें बाज़ारो में अपनी फसल सीधे बेच सकते हैं। पर लीची के बिक्री के लिए किसानो को निचे दिए गयें पहलुओं की पुष्टि करनी होगी:
अगर किसान स्वयं फलो की बिक्री करना चाहतें हैं तो ऍफ़ एस एस ए आई लाइसेंस , जो को फ़ूडसेफ्टी के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार के द्वारा दिया जाता हैं , को लेना होगा। अधिक जानकारी के किये नज़दीकी ऍफ़ एस एस ए आई कार्यालय में मिले। ठीक उसी प्रकार निर्यात के दृष्टि कोण से किसानो को आई इ सी का लाइसेंस अनिवार्य हैं। अधिक जानकारी के किये आई इ सी कार्यालय में मिले।
अधिक जानकारी और सहायता के लिए भारतीय कृषि अनसंधान परिसद के उपविभाग राष्ट्रीय लीची अनुसन्धान केंद्र (www.nrclitchi.icar.gov.in ) में संपर्क करें।
Above articles have been written with the reference of different concerned departments governed by India Govt.
Name: Manish Swaroop
Company: Coffret Products
Business: Makreting Services & FMCG