मेरे घर आई एक नन्‍हीं परी…। बिल्‍कुल यही अंदाज। नन्‍हीं परी आई तो परिवार वाले खुशी से झूम उठे। बकायदा पालकी में बिठाकर उस परी को घर लाए। इस दौरान बैंड-बाजा के साथ बेटी की अगवानी की गई। पूरा माहौल उत्‍सवी बन गया। इस एक पहल ने उस मिथक को भी तोड़ा जो परिवार में बेटी के जन्‍म पर मायूसी वाली होती है। अस्‍पताल से लेकर घर तक जिसने देखा सराहना किए बिना नहीं रह सके।

पालकी में बिठाकर घर लाई गई लक्ष्‍मी

बात हो रही है बिहार के सारण जिले के एकमा प्रखंड की। हंसराजपुर गोपाली टोले के रहने वाले किराना व्‍यवसायी के पुत्र धीरज गुप्‍ता की पुत्री का जन्‍म सावन की पहली सोमवारी पर हुआ। एक निजी क्‍लीनिक में धीरज की पत्‍नी ने परी जैसी बेटी को जन्‍म दिया तो परिवार में लगा जैसे महादेव का बड़ा आशीर्वाद मिल गया। वहां से 21 जुलाई को ब‍िटिया रानी को घर लाने की तैयारी शुरू हुई। घर में करीब 45 वर्षों बाद बेटी का जन्‍म हुआ है इसलिए इस लक्ष्‍मी का आगमन भी तो खास होना था।

पालकी देख लोगों ने बजाई तालियां

बच्‍ची के पिता ने सजी-धजी पालकी मंगवाई। अस्‍पताल में पालकी पहुंचा तो लोग चौंक गए। पालकी में माता-पिता अपनी बच्‍ची को लेकर बैठे तो लोग हैरान रह गए। सबने खुशी में तालियां बजाईं। जिस समय यह सब हो रहा था उस समय भी आसमान से फुहारें पड़ रही थी। बताया गया कि धीरज गुप्‍ता चार भाई हैं। उनकी बहन नहीं हैं। चार भाई में पांच बेटे हैं। धीरज को तीन वर्ष का एक बेटा है। ऐसे में जब पुत्री का जन्‍म हुआ तो खुशी स्‍वाभाविक भी थी।

यह सब देख रहे लोगों का कहना था कि इस परिवार ने बड़ा खास संदेश दिया है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का संदेश इस परिवार ने दिया है। इसकी जितनी सराहना की जाए कम होगी।

Source : News18

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