सावन के महीने में मधुश्रावणी का त्योहार मनाया जाता है. मिथिलांचल में इसका खास महत्व है. इस बार सावन के महीने में पर्याप्त बारिश नहीं हुई, इसके बावजूद सुहागन महिलाओं के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है. मधुश्रावणी व्रत मिथिला की समृद्ध संस्कृति की झलक मानी जाती है. मिथिलांचल में मधुश्रावणी महत्वपूर्ण लोकपर्व है.
गांव की गलियों में फूल लोढ़ने निकली नवविवाहित महिलाएं और उनकी सहेलियों की हंसी-ठिठोली गूंज रही है. मिथिलांचल में मधुश्रावणी के त्योहार का खासा महत्व है. इस लोकपर्व के दौरान नवविवाहित महिलाएं जहां पति की सलामती के लिए पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ करती हैं तो वहीं मां और भाभी के साथ बाकी नाते-रिश्तेदार पारंपरिक मैथिली लोकगीत गाकर नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देती हैं.
मान्यता है कि मधुश्रावणी का पर्व नवविवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है. मधुश्रावणी सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक मनाया जाता है. इस दौरान नवविवाहिताएं ससुराल से आए नए वस्त्र और आभूषण पहनती हैं.
नवविवाहिताएं गीत गाते हुए फूल लोढ़ने जाती हैं. इसके बाद मंदिर में एक साथ फूल की डाली सजाती हैं और अगले दिन उसी फूल से नाग-नागिन की पूजा करने की प्रथा है.
मिथिलांचल में मधुश्रावणी एकमात्र लोकपर्व है, जिसमें महिला ही पुरोहित होती हैं. इस पर्व के दौरान महिला पंडित ही पूजा कराने के साथ-साथ कथावाचन भी कराती हैं. मधुश्रावणी के अंतिम दिन टेमी दागने की भी परंपरा है. इसे आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन मान्यता है कि पूजा के अंतिम दिन जलती हुई आग की बत्ती (टेमी) से विवाहिता के घुटने और पैरों पर दागने की परंपरा है. इस रस्म को पूरा करते समय पति द्वारा पान के पत्ते से पत्नी की आंख को ढंक दिया जाता है. इसके बाद बहन या भाभी के द्वारा जलती हुई बत्ती से घुटने को तीन बार दागा जाता है.
कहा जाता है कि टेमी दागने के बाद घुटने पर अगर फफोले निकल आए तो यह अत्यंत शुभ होता है. हालांकि, टेमी दागने की रस्म को अमानवीय मानते हुए समय के साथ इसमें कुछ बदलाव किया गया है. अब ज्यादातर लोग बत्ती की बजाय फूल या पत्ती से नवविवाहिता के घुटने को छूकर इस रस्म को पूरा करते हैं.
Source : News18