समलैंगिक शादियों को मंजूरी देने की मांग वाली अर्जियों का केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीखा विरोध किया था। सरकार ने कहा था कि यदि ऐसी शादियों को मंजूरी दी गई तो इससे समाज के ताने-बाने पर असर पड़ेगा। भारत में कोई भी धर्म या समाज समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देता है। इसके अलावा इसमें कई कानूनी पेचों का भी जिक्र करते हुए था कि समलैंगिक शादियों को मान्यता देने पर महिला एवं पुरुष की परिभाषा ही बदलनी होगी। सरकार की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती तो फिर वह विचार करे कि कैसे समलैंगिक संबंधों में रहने वाले लोगों को सुविधाएं मिल सकती हैं।
अब सरकार ने इसका जवाब देते हुए बुधवार को कहा कि हम इसके लिए एक कमेटी का गठन करेंगे। सरकार ने अदालत में बताया कि वह कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करेगी, जो समलैंगिक कपल्स को आने वाली परेशानियों पर विचार करेगी। यह समिति सुझाव देगी कि कैसे LGBTQIA कम्युनिटी को कुछ सुविधाएं दी जा सकती हैं। यही नहीं सरकार ने समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग करने वालों से यह भी कहा कि वे कमिटी को अपने सुझाव दे सकते हैं, जिन पर विचार किया जाएगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा, ‘इस मामले में कुछ वास्तविक मानवीय पहलू हैं, जिन पर चर्चा की गई है। हम विचार कर रहे हैं कि इस मामले में प्रशासनिक तौर पर क्या किया जा सकता है। सरकार का रुख सकारात्मक है। इस मामले में अलग-अलग मंत्रालयों के बीच समन्वय की भी जरूरत है। कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और याचिकाकर्ताओं के सुझावों को भी लिया जाएगा।’ बता दें कि बीते कई दिनों से सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच समलैंगिक शादियों की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई कर रही है। अदालत में दिलचस्प बहस देखने को मिली थी और सरकार ने इसे लेकर सामाजिक पहलुओं के बारे में बताया था।
SOURCE : HINDUSTAN