तमिलनाडु सरकार ने बुधवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच के लिए आम सहमति वापस ले ली. केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ सत्तारूढ़ डीएमके की आलोचना के बीच सरकार ने ये कदम उठाया है. डीएमके ने इससे पहले कहा था कि केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को “चुप” करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है.
दरअसल, आम सहमति वापसी के बाद अब केंद्रीय जांच एजेंसी को राज्य में किसी भी मामले की जांच करने से पहले तमिलनाडु सरकार से अनुमति लेनी होगी. वहीं तमिलनाडु सीबीआई द्वारा जांच के लिए अपनी सामान्य सहमति वापस लेने वाला दसवां भारतीय राज्य बन गया. इससे पहले जिन अन्य 9 राज्यों ने मामलों की जांच के लिए सीबीआई से अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली थी उनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल शामिल हैं.
बता कें कि सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (डीपीएसईए) द्वारा शासित है. इस कानून के तहत दिल्ली पुलिस की एक विशेष शाखा का गठन करके सीबीआई बनाई गई है. इसका मूल अधिकार क्षेत्र दिल्ली तक सीमित है. वहीं अन्य राज्यों में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को संबंधित राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होती है.यह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) जैसी अन्य केंद्र सरकार की एजेंसियों के विपरीत है. क्योंकि अन्य एजेंसियों के ऐसी अनुमति की जरूरत नहीं होती है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मोदी सरकार के खिलाफ मुखर हैं. वे इसी महीने 23 जून को विपक्षी दलों की पटना में बैठक बुला रहे हैं. वहीं बिहार में भी लालू यादव और उनके परिजनों तथा निकटवर्ती लोगों के खिलाफ अक्सर सीबीआई-ईडी जैसी एजेंसियों की छापेमारी होती रही है. राजद नेताओं की ओर से भी बिहार में सीबीआई की एंट्री बैन करने की मांग की जा रही है. मार्च 2023 में ही जब रेलवे में नौकरी के बदले जमीन घोटाले में लालू यादव की बेटी के यहां सीबीआई की छापेमारी हुई तब राजद ने जोरशोर से सीबीआई की एंट्री बैन करने की मांग उठाई थी. राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने विधानसभा में शून्य काल के दौरान मांग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से ‘आम सहमति (जनरल कंसेंट)’ वापस लेने की मांग की.
राजद नेता शिवानंद तिवारी ने भी सीबीआई के दुरूपयोग का मामला उठाया था. वहीं बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ राजद नेता उदय नारायण चौधरी ने कहा था कि सीबीआई और ईडी की विश्वसनीयता पूरे देश में समाप्त होती जा रही है. इनका दुरूपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में किया जा रहा है. इसलिए बिहार में सीबीआई की एंट्री पर नीतीश कुमार को बैन लगाना चाहिए. हालांकि नीतीश कुमार या जदयू की ओर से राजद की इस मांग पर गंभीरता नहीं दिखाई गई. ऐसे में अब तमिलनाडु में सीबीआई की जांच के लिए जनरल कंसेंट वापस लेने के निर्णय के बाद बिहार में फिर से यह मांग राजद की ओर से उठाई जा रही है. ऐसे में नीतीश कुमार अब क्या निर्णय लेते हैं यह बेहद अहम होगा.