बिहार का कैमूर प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा प्राचीन मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां पंवरा पहाड़ी पर मुंडेश्वरी मंदिर है। ये मंदिर खुद में एक इतिहास समेटे हुए है। 600 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर को लेकर ऐसा कहा जाता है कि यहां आने आवे श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है।

पटना से करीब 200 किलोमीटर दूर कैमूर की वादियों के बीच मुंडेश्वरी देवी का मंदिर स्थापित है। चारों तरफ से जंगलों से घिरा ये मंदिर हिंदू श्रद्धालुओं के लिए खास है। इसे लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता के अनुसार इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर आम लोगों को परेशान करते थे। जिस पर देवी भवानी ने धरती पर आकर चंड का वध किया। इस पर मुंड इसी पहाड़ी में छिप गया था लेकिन देवी ने यहां भी पहुंचकर मुंड का वध कर दिया। जब से ये स्थान मुंडेश्वरी के नाम से जाना जाने लगा।

इस मंदिर की एक अनोखी परंपरा है जो इसे खास बनाती है। यहां बलि के लिए बकरा तो जरूर लाया जाता है लेकिन उसके प्राण नहीं लिए जाते। दरअसल बकरे को देवी की प्रतिमा के सामने लाया जाता है। इस पर पुजारी थोड़े से चावल को प्रतिमा से स्पर्श कराकर बकरे की तरफ फेंक देता है। जिससे वह बेहोश हो जाता है। फिर दोबारा चावल फेंकने से बकरे को होश हा जाता है। इस रस्म को देखने लोग दूर-दूर से मंदिर के दरबार आते हैं।

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इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है। ये सूर्य की स्थित के साथ-साथ शिवलिंग का रंग भी बदलता रहता है। यहां सुबह, दोपहर और शाम के समय शिवलिंग भिन्न-भिन्न रंग में दिखता है। यहां नंदी की भी मूर्ति है। मंदिर के इतिहास और संरचना की बात करें तो प्राप्त शिलालेखों के अनुसार ये मंदिर 389 ई. का है। मंदिर की नक्काशी और प्रतिमा उत्तर गुप्तकालीन लगती है। मंदिर की संरचना अष्टकोणीय है। जबकि इसके चार दरवाजें हैं। जिसमें से एक को बंद कर दिया गया है।

Source : Hindustan

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