BUXAR : भगवान सूर्य की पूजा अनादि काल से होती आ रही है। लोक आस्था के महापर्व छठ के दौरान भी भगवान भास्कर की विधिवत उपासना की जाती है। बावजूद सूर्य मंदिर हर जगह नहीं मिलते। इतिहास बताता है कि सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्द्धन के काल में उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में सूर्य मंदिरों का निर्माण हुआ था। ऐसा ही एक सूर्य मंदिर जिले के राजपुर प्रखंड के देवढ़िया गांव में स्थित है।
बक्सर से करीब तीस किलोमीटर दूर बसे देवढ़िया गांव का इतिहास तीन हजार वर्षों से ज्यादा पुराना है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यहां कभी देवी-देवताओें के मंदिर हुआ करते थे, जो बाद में आक्रमणकारियों के हमले और समय की मार के कारण नहीं रहे। इसी गांव में स्थित है जिले का इकलौता प्राचीन सूर्य मंदिर।
खुद गांव के बुजुर्गों को नहीं पता कि इस छोटे-से मंदिर का निर्माण कब हुआ? किसने प्रतिमा स्थापित की? मंदिर की पत्थर से बनी मोटी चौखट पर अज्ञात लिपि में कुछ लिखा हुआ है, जिसे आज तक पढ़ने की जहमत नहीं उठाई गई।
जानकारों के मुताबिक चौखट पर ब्राह्मी लिपि के चिह्न खुदे हैं। इसी के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि यह सूर्य मंदिर सम्राट हर्षवर्द्धन के काल का है। कुछ विद्वान इसे सिद्धमातृका लिपि बताते हैं। बहरहाल, मंदिर के भीतर भगवान सूर्य की घोड़े पर सवार करीब दो से ढाई फीट ऊंची तीन प्रतिमाएं एक साथ स्थापित हैं। कुछ अन्य देवी-देवताओं की भी प्रतिमाएं हैं, जो काफी पुरानी हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि ये सारी प्रतिमाएं मंदिर के बगल में स्थित सरोवर की खुदाई के दौरान ही सैकड़ों साल पहले प्राप्त हुई थी।
Source : Hindustan