उत्तर प्रदेश की एक महिला जज ने इच्छामृत्यु की मांग की है. उन्होंने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखकर इच्छामृत्यु मांगी है. महिला जज ने वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है.
बताया जा रहा है कि महिला जज की चिट्ठी पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल अतुल एम. कुरहेकर से इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टेटस रिपोर्ट मांगने को कहा है.
सीजेआई को लिखी चिट्ठी में महिला जज ने आरोप लगाया है कि डिस्ट्रिक्ट जज और उनके सहयोगियों ने उनका यौन उत्पीड़न किया है. उन्होंने दावा किया कि डिस्ट्रिक्ट जज ने उन्हें रात में बुलाया था.
उन्होंने दावा किया कि शिकायत करने के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एडमिनिस्ट्रेटिव जज ने कोई एक्शन नहीं लिया. चिट्ठी के आखिरी में महिला जज ने इच्छामृत्यु की मांग की है.
बहरहाल, इच्छामृत्यु मांगने पर भारत में कोई रोक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मार्च 2018 को इच्छामृत्यु को मंजूरी दी थी. उस समय कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जिस तरह व्यक्ति को जीने का अधिकार है, उसी तरह गरिमा से मरने का अधिकार भी है.
हालांकि, इच्छामृत्यु सभी के लिए नहीं है. सिर्फ गंभीर बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति के लिए थी. सुप्रीम कोर्ट ने ‘पैसिव यूथेनेशिया’ को मंजूरी दी थी. इसमें बीमार व्यक्ति का इलाज बंद कर दिया जाता है, ताकि उसकी मौत हो सके.
ऐसे में जानते हैं कि इच्छामृत्यु को लेकर भारत में नियम-कायदे क्या हैं? कौन इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर सकता है? पर उससे पहले जानते हैं कि इच्छामृत्यु का मतलब क्या है…?
इच्छामृत्यु मतलब क्या?
इच्छामृत्यु का मतलब है किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा से मृत्यु दे देना. इसमें डॉक्टर की मदद से उसके जीवन का अंत किया जाता है, ताकि उसे दर्द से छुटकारा दिलाया जा सके.
इच्छामृत्यु दो तरह से दी जाती है. पहली- एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु और दूसरी- पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु.
एक्टिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति को डॉक्टर जहरीली दवा या इंजेक्शन देते हैं, ताकि उसकी मौत हो जाए. वहीं, पैसिव यूथेनेशिया में मरीज को इलाज रोक दिया जाता है, अगर वो वेंटिलेटर पर है तो वहां से हटा दिया जाता है, उसकी दवाएं बंद कर दी जाती हैं. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथेनेशिया को ही मंजूरी दी थी.
किनके लिए है इच्छामृत्यु?
इच्छामृत्यु उसी व्यक्ति के लिए है जो किसी ऐसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, जिसका इलाज संभव न हो और जिंदा रहने में उसे बेहद कष्ट उठाना पड़ रहा हो.
कोई मरीज इच्छामृत्यु के लिए तभी आवेदन कर सकता है, जब उसकी बीमारी असहनीय हो गई हो और उसकी वजह से उसे पीड़ा उठानी पड़ रही हो.
दुनिया के ज्यादातर देशों में यही नियम है. ऐसा नहीं है कि कोई भी व्यक्ति इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर दे. सिर्फ लाइलाज बीमारी से जूझ रहा व्यक्ति ही इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर सकता है.
इच्छामृत्यु के लिए लिखित आवेदन देना होता है. मरीज और उसके परिजनों को इस बारे में पता होना चाहिए. इसे ‘लिविंग विल’ कहा जाता है.
लिविंग विल क्या होती है?
अगर किसी व्यक्ति को लाइलाज बीमारी हो जाती है और उसके ठीक होने की उम्मीद नहीं बचती, तो ऐसी स्थिति में मरीज इच्छामृत्यु के लिए खुद एक लिखित दस्तावेज देता है, जिसे ‘लिविंग विल’ कहा जाता है.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार, लिविंग विल की अनुमति तभी दी जा सकती है, जब किसी व्यक्ति को इच्छामृत्यु चाहिए और इसकी जानकारी उसके परिवार को हो.
इसके अलावा अगर डॉक्टरों की टीम कह दे कि मरीज का बच पाना संभव नहीं है तो लिविंग विल दी जा सकती है. हालांकि, किसी मरीज को इच्छामृत्यु देना है या नहीं, इसका फैसला मेडिकल बोर्ड करेगा.
किन बीमारियों पर मिलती है इच्छामृत्यु?
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस में किसी बीमारी का जिक्र नहीं है. अगर डॉक्टर को लगता है कि मरीज के जिंदा बचने की उम्मीद नहीं है, तो मरीज और उसके परिवार की सलाह पर उसे इच्छामृत्यु दी जा सकती है. हालांकि, ये जरूरी है कि जिस व्यक्ति को इच्छामृत्यु दी जा रही हो, उसे उसके बारे में पता हो.
क्या आत्महत्या भी इच्छामृत्यु है?
इच्छामृत्यु और आत्महत्या को अक्सर जोड़कर देखा जाता है, लेकिन ये दोनों अलग-अलग है. आईपीसी की धारा-309 के तहत आत्महत्या की कोशिश करना अपराध है.
धारा-309 के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करता है तो दोषी पाए जाने पर एक साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.
हालांकि, मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 की धारा 115 आत्महत्या की कोशिश करने वाले तनाव से जूझ रहे लोगों को इससे राहत देती है. ये धारा कहती है कि अगर ये साबित हो जाता है कि आत्महत्या की कोशिश करने वाला व्यक्ति बेहद तनाव में था, तो उसे किसी तरह की सजा नहीं दी जा सकती.
हाल ही में केंद्र सरकार ने आईपीसी को बदलने के लिए भारतीय न्याय संहिता बिल लेकर आई है. इसमें धारा-309 को शामिल नहीं किया गया है. यानी, प्रस्तावित बीएनएस में आत्महत्या की कोशिश को अपराध नहीं माना गया है. हालांकि, इसमें धारा 224 है, जो कहती है कि जो कोई किसी लोकसेवक को काम करने के लिए मजबूर करने या रोकने के मकसद से आत्महत्या की कोशिश करता है, तो उसे एक साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है.
Source : Aaj Tak