PATNA : राज्य में चल रही भीषण शीतलहर के कारण स्कूलों को बंद रखने के आदेश को लेकर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक और पटना के डीएम के बीच की टकराव अब और बढ़ गई है। केके पाठक ने 20 जनवरी को सारे जिलाधिकारी को निर्देश देते हुए कहा था कि वे ठंढ़ के कारण स्कूल नहीं बंद करवायें। लेकिन पटना के डीएम ने जिले के स्कूलों को 23 जनवरी तक बंद करने का आदेश जारी कर दिया।

इसके बाद से पटना डीएम और शिक्षा विभाग में सवाल जवाब का दौर शुरू हो गया था। अब शिक्षा विभाग ने पटना डीएम को नया पत्र लिखकर पूछा है कि बच्चों को सिर्फ स्कूल जाने से क्यों रोका है। उनके घर से बाहर निकलने पर रोक लगाने का आदेश क्यों नहीं जारी किया गया है। इस मामले में शिक्षा विभाग डीएम के आदेश के खिलाफ कानूनी राय भी लेगा।

शिक्षा विभाग के माध्यमिक शिक्षा निदेशक कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव ने पटना डीएम क पत्र भेजा है। दरअसल यह उस पत्र का जवाब है जो सोमवार को पटना डीएम ने शिक्षा विभाग को भेजा था। पटना के डीएम चंद्रशेखर ने शिक्षा विभाग को जवाब देते कहा था कि स्कूलों को बंद रखने का आदेश देना उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। ठंड में बच्चों की जान की रक्षा करने के लिए स्कूलो को बंद करने का आदेश दिया गया है। इसमें शिक्षा विभाग से कोई सहमति लेने की जरूरत ही नहीं है। इसके बाद अब शिक्षा विभाग ने डीएम चंद्रशेखर को जवाबी पत्र लिखा है।

देखिये शिक्षा विभाग के पत्र में क्या लिखा गया है

“आपके पत्र के जवाब में कहना है कि धारा-144 CrPC के तहत जिला प्रशासन, पटना द्वारा कई आदेश निकालते हुए विद्यालय बन्द किया गया था। पहले के आदेशों में कोचिंग इंस्टीच्यूट का उल्लेख नहीं था, लेकिन अंतिम आदेश (आपका ज्ञापांक-997, दिनांक-21.01.24) में यह उल्लेख है कि कोचिंग इंस्टीच्यूट भी बन्द रहेंगे.”

उल्लेखनीय है कि अपर मुख्य सचिव के पत्रांक-12/गो०, दिनांक-20.01.24 द्वारा सभी प्रमंडलीय आयुक्त एवं सभी जिलाधिकारियों को यह कहा गया था कि धारा-144 CrPC के तहत विद्यालय बन्द करने की परम्परा गलत है और इस पर रोक लगनी चाहिए. साथ ही यह भी कहा गया था कि जहां तक सरकारी विद्यालय बन्द करने की बात है, तो इसमें कोई हस्तक्षेप करने से पहले विभाग से पूर्वानुमति ले ली जाए.

किन्तु आपने शिक्षा विभाग के स्पष्ट आदेशों का उल्लंघन करते हुए जानबूझकर अपना उपरोक्त ज्ञापांक-997, दिनांक-21.01.24 निर्गत किया. आपने अपने आदेश में पटना जिले में शीतलहर के कारण बच्चों के स्वास्थ्य एवं जीवन के खतरे का उल्लेख किया है. इस प्रकार का निष्कर्ष पर पहुंचने का आपका निर्णय किन परिस्थितियों पर आधारित है, इसका उल्लेख न तो निर्गत आदेश में है और न ही इसकी जानकारी विभाग को दी गई है. शिक्षा विभाग का यह मानना है कि यदि धारा-144 लगानी चाहिए तो सामाजिक जीवन के सभी अवयवों पर समान रूप यह लागू होना चाहिए. आपके उक्त आदेश के आलोक में यदि विभाग माननीय उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दे तो निम्नांकित बिन्दुओं पर आपको स्पष्टीकरण देना पड़ सकता है :-

1. शीतलहर में केवल बच्चों का स्वास्थ्य और जीवन ही खतरे में पड़ता है और वृद्धों एवं बीमार लोगों का जीवन खतरे में नहीं पड़ता है ऐसा किस आधार पर – आपके द्वारा माना गया है.

2. विद्यालय के अलावे व्यापारिक प्रतिष्ठानों, दुकानों, सिनेमा गृहों, मॉल, पार्क इत्यादि को बन्द करना तो दूर, उनके समयावधि में भी कोई बदलाव आपके द्वारा नहीं किया गया है.

3. धारा-144 लगाने के बावजूद जगह-जगह पर बच्चें आते-जाते दिख जाते हैं। अतः इतने व्यापक पैमाने पर धारा-144 को enforce करने के लिए आपके द्वारा क्या तैयारी की गई थी. क्योंकि, यह नहीं माना जा सकता है कि बच्चे केवल विद्यालय जाने पर बीमार होंगे एवं अन्य स्थानों में (यथा-बाजार, मॉल, पार्क इत्यादि) जाने पर बीमार नहीं होंगे. अतः उदाहरणार्थ यह पूछा जा सकता है कि आपने अपने धारा-144 के आदेश में यह उल्लेख क्यों नहीं किया कि “12 वर्ष से कम आयु का कोई बच्चा घर से ही बाहर नहीं निकलेगा. संभवतः वैसा आदेश बेहतर होता, क्योंकि केवल विद्यालय बन्द कर देने से क्या बच्चे सुरक्षित माने जा सकते हैं?

4. यह भी पूछा जा सकता है कि मिशन दक्ष एवं बोर्ड परीक्षा हेतु विशेष कक्षाओं के संचालन को किस आधार पर आपने मुक्त किया। आपके उपरोक्त आदेशों में आपसी विरोधाभास है. क्योंकि एक तरफ आपने कक्षा-8 तक की शैक्षणिक गतिविधियों पर रोक लगाई है, किन्तु मिशन दक्ष को जारी रखा है. उल्लेखनीय है कि मिशन दक्ष भी कक्षा-3 से कक्षा-8 तक के बच्चों पर लागू होता है.

5. यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि इस तरह का आदेश, जो आपने दिनांक-08.01. 2024 से कई चरणों में निकाला है, के पूर्व आपने किन सूचनाओं को प्राप्त कर यह तय किया कि शीतलहर के कारण विद्यालय बन्द किया जाना चाहिए. मौसम विभाग अथवा अन्य स्रोतों से क्या जानकारी ली गई. कितने आंकड़ों एवं Temperature Chart को प्राप्त कर अध्ययन किया गया? दिनांक-08.01.2024 के बाद से इन आंकड़ों की किस प्रकार समीक्षा की गई, जिसके आधार पर आपने इस आदेश को निकाला.

अतः उपरोक्त कारणों से स्पष्ट है कि आपका उपरोक्त आदेश न्यायिक समीक्षा पर बिल्कुल भी खरा नहीं उतरेगा। चूंकि यह सरकार के दो विभिन्न अंगों का आपसी मामला है, इसलिए शिक्षा विभाग आपके इस आदेश को माननीय उच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दे रहा है। लेकिन आपसे यह आशा नहीं की जाती थी कि शिक्षा विभाग के स्पश्ट आदेश के बावजूद, बिना शिक्षा विभाग के अनुमति के, आप विद्यालय बन्द करेंगे.

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आपने अपने ज्ञापांक-1042, दिनांक-22.01.24 में क्षेत्राधिकार का उल्लेख किया है. इस संबंध में कहना है कि क्षेत्राधिकार का उल्लंघन विभाग ने नहीं किया है अपितु, आपने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर धारा-144 के तहत पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण आदेश पारित किया है. सरकारी प्रतिष्ठान कब और किस प्रकार चलेंगे, उसके लिए जब एक Regulatory Mechanism उपलब्ध है, तब वहां CrPC की धारा-144 लगाना सर्वथा अनुचित है और यह आपके द्वारा शिक्षा विभाग के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप है.

आप यह भी ध्यान में रखना चाहेंगे कि CrPC की धारा-144 सामान्यतः निजी मामलों में लगाई जाती है. CrPC की धारा-144 जिस अध्याय में ईंगित है, उस अध्याय का विषय है “Maintenance of Public Order and Tranquillity.” साथ ही, उसके उप अध्याय की कंडिका-C में उल्लेख है “Urgent Cases of Nuisance or Apprehended Danger.” आपसे आशा की जाती है कि जिस अध्याय में धारा-144 ईंगित है, उसकी पूरी spirit के आलोक में ही यह तय करें कि किन मामलों में धारा-144 लगाना उचित होगा.

शिक्षा विभाग ने पटना डीएम को कहा है कि परम्परागत तौर पर, आंख मूंदकर सरकारी विद्यालयों पर धारा-144 लगाना गलत है, क्योंकि इन प्रतिष्ठानों को Regulate करने के लिए सरकार के पास एक प्रशासनिक Regulatory Mechanism होता है, जिसे हम “शिक्षा विभाग” कहते हैं. वर्तमान प्रकरण में यदि आप समझते थे कि विद्यालयों को बन्द करना जरूरी है तो आप शिक्षा विभाग से ऐसा अनुरोध कर सकते थे.

उल्लेखनीय है कि अब शिक्षा विभाग, जिलाधिकारियों को CrPC की धारा-144 के तहत विद्यालय बन्द करने की परम्परा से रोक रहा है, तो उसका मूल उद्देश्य यह नहीं है कि शीतलहर में भी बच्चे विद्यालय आएं अपितु इसका मूल उद्देश्य यह है कि चूंकि सभी सरकारी शिक्षक, जिनकी संख्या लगभग 06 लाख है, वे अब सरकारी कर्मचारी के समकक्ष हो चुके हैं. इनमें 02 लाख बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित विद्यालय अध्यापक भी शामिल हैं.

इस मौसम में जब सरकारी कार्यालय, प्रखंड कार्यालय या अन्य सभी कार्यालय के कर्मचारी अपने-अपने कार्यालयों में जाते हैं, तो उसी प्रकार शिक्षा विभाग का यह मानना है कि इन शिक्षकों को भी अपने कार्यालय (यानी विद्यालय) आना चाहिए और निश्चित समयावधि तक वहां बैठना चाहिए. इसका सीधा संबंध शिक्षकों/विद्यालय अध्यापकों में अनुशासन लाना है, इस बात को जिला प्रशासन को ध्यान में रखना चाहिए. शिक्षा विभाग इस बात से भलिभांति अवगत है कि इतनी शीतलहर में बच्चे विद्यालय खुलने के बावजूद नहीं आएंगे. किन्तु विद्यालय यदि खुला रहता है तो उससे विभागीय अनुशासन सुदृढ़ होता है और उस दौरान विद्यालय के अन्य प्रशासनिक एवं अभियंत्रण संबंधी कार्य होते रहते हैं.

अतः उपरोक्त मौलिक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग सभी दण्डाधिकारियों से यह आशा करता है कि वे 06 लाख शिक्षकों को नियमित विद्यालय आने की आदत डलवाने में इस विभाग को सहयोग करे. डीएम से कहा गया है कि इन बिन्दुओं पर अपना मंतव्य दें ताकि उस मंतव्य के साथ इस पर विधि परामर्श प्राप्त किया जा सके.

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