कांवड़ यात्रा मार्ग पर खानपान और फलों की दुकानों पर मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के विवाद के बाद, अब सुप्रीम कोर्ट में हलाल और झटका मांस परोसे जाने को लेकर एक याचिका दाखिल की गई है। याचिका में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वे अपने यहां स्थित भोजनालयों, रेस्तरां सहित खानपान की सभी दुकानों को यह स्पष्ट रूप से उल्लेख करने का आदेश दें कि उनके यहां परोसा जा रहा मांस किस प्रकार का है – हलाल या झटका।
याचिका में स्विगी, जोमैटो और अन्य सभी फूड डिलीवरी ऐप को भी इसी तरह का निर्देश जारी करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि झटका मांस का विकल्प नहीं देने वाले रेस्तरां संविधान के अनुच्छेद 17, अनुच्छेद 19(1)(जी) और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि झटका मांस का विकल्प नहीं देने से पारंपरिक रूप से हाशिए पर रहने वाला दलित समुदाय, जो मांस के कारोबार में शामिल है, काफी प्रभावित होता है।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक अन्य अर्जी में कांवड़ यात्रा मार्ग पर खानपान और फलों की दुकानों पर मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा जारी निर्देशों के समर्थन में एक याचिका दाखिल की गई थी। इसमें, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) द्वारा जारी निर्देशों का समर्थन करते हुए, सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने और पक्ष रखने की अनुमति मांगी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग पर खानपान और फलों की दुकानों पर मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देशों पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मध्य प्रदेश सरकार को इसलिए नोटिस जारी किया गया था क्योंकि उज्जैन नगर निगम ने इसी तरह का निर्देश जारी किया है।
लंबी सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के निर्देशों पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश पारित करना उचित है। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को होगी।