अब हत्या, लूट, डकैती, दुष्कर्म जैसी संगीन वारदातों की जांच के दौरान अनुसंधान अधिकारियों के लिए घटनास्थल की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी अनिवार्य कर दी गई है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत यह प्रावधान किया गया है, और इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने 4 अगस्त को “ई-साक्ष्य एप” लॉन्च किया है। शुक्रवार को बिहार पुलिस के लगभग 25 हजार फील्ड अफसरों को इस एप की ट्रेनिंग दी जाएगी, जिसके बाद इसे बिहार में जल्द ही शुरू किया जाएगा।
इस एप का उपयोग करते हुए अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से लेकर केस के ट्रायल, पीड़ितों के बयान और आरोपियों की स्वीकारोक्ति को इस एप पर सुरक्षित रूप से अपलोड कर सकते हैं। अपलोड की गई सभी जानकारी को एक सुरक्षित एविडेंस लॉकर में भेजा जाता है, जो बाद में चार्जशीट के साथ इंटिग्रेट कर अदालत में इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस्तुत की जाएगी। इस प्रक्रिया से अनुसंधान के हर चरण को ऑनलाइन ट्रैक किया जा सकेगा, जिससे जांच प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और सुरक्षित होगी।
ई-साक्ष्य एप के फीचर्स:
आईसीजेएस प्लेटफॉर्म: यह एक ब्रिज की तरह काम करता है, जो पुलिस, कोर्ट और अन्य संबंधित एजेंसियों के बीच डाटा का आदान-प्रदान करने में सहायक है।
पुलिस और कोर्ट एप्लिकेशन: यह एप्लिकेशन पुलिस और कोर्ट को विभिन्न प्रकार के डाटा को देखने और एक्सेस करने की सुविधा प्रदान करता है। हालांकि, इस डाटा तक पहुंच केवल उन अधिकारियों को ही मिलेगी, जिनके पास इसे देखने का अधिकार होगा।
लॉकर: इस एप में एक सुरक्षित स्टोरेज सिस्टम है, जिसे एंटीटी लॉकर की तरह डिजाइन किया गया है। इसमें डेटा पैकेट्स को सुरक्षित तरीके से स्टोर किया जाता है, ताकि किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ से बचा जा सके।
फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह की वीडियोग्राफी:
ई-साक्ष्य एप के माध्यम से फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह की प्रक्रिया की भी वीडियोग्राफी की जा सकेगी। इससे साक्ष्य संग्रहण की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता आएगी। इस प्लेटफार्म का उपयोग नए कानूनों के कार्यान्वयन को न केवल प्रभावी बनाएगा, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में सुरक्षा और पारदर्शिता को भी सुनिश्चित करेगा।
इस नई तकनीक से पुलिस विभाग को अनुसंधान में अधिक पारदर्शिता और कुशलता मिलेगी, जिससे न्यायिक प्रक्रियाओं में भी सुधार की उम्मीद है।