UPSC में लेटरल एंट्री पर छिड़ी बहस के बीच केंद्र सरकार ने मंगलवार को इस भर्ती प्रक्रिया के विज्ञापन पर रोक लगा दी है। केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC चेयरमैन को पत्र लिखते हुए बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर यह फैसला लिया गया है।
Department of Personnel and Training Minister writes to Chairman UPSC on cancelling the Lateral Entry advertisement as per directions of Prime Minister Narendra Modi. pic.twitter.com/1lfYTT7dwW
— ANI (@ANI) August 20, 2024
इस निर्णय के पीछे क्या कारण?
कार्मिक मंत्री के पत्र में उल्लेख किया गया है कि यह फैसला लेटरल एंट्री की व्यापक पुनर्मूल्यांकन प्रक्रिया के तहत लिया गया है। पत्र के अनुसार, अधिकांश लेटरल एंट्रीज 2014 से पहले एडहॉक आधार पर की गई थीं। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि लेटरल एंट्री संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए, खासकर आरक्षण के प्रावधानों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं होना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि सार्वजनिक नौकरियों में सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता होनी चाहिए, और लेटरल एंट्री वाले पदों की समीक्षा के बाद उनमें सुधार किया जाना चाहिए। इसी कारण 17 अगस्त को जारी लेटरल एंट्री वाले विज्ञापन को रद्द करने का निर्देश दिया गया है, ताकि सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण की दृष्टि से उचित कदम उठाए जा सकें।
इससे पहले 17 अगस्त को UPSC ने लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियों का विज्ञापन जारी किया था। लेटरल एंट्री की प्रक्रिया में उम्मीदवार बिना UPSC की परीक्षा दिए भर्ती होते हैं, जिसमें आरक्षण के नियमों का लाभ नहीं मिलता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस प्रक्रिया का विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि इसके माध्यम से SC, ST और OBC वर्ग के आरक्षण को दरकिनार किया जा रहा है।
विवाद बढ़ने पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्थिति स्पष्ट की थी कि लेटरल एंट्री की शुरुआत कोई नई बात नहीं है। 1970 के दशक से ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों में यह प्रक्रिया चलती रही है, और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी इसके उदाहरण हैं।