सहरसा जिले के महिषी गांव में स्थित सिद्धपीठ उग्रतारा मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है। जानकारी के मुताबिक, यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है और यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होने का विश्वास है। खास बात यह है कि माता उग्रतारा दिन के तीन पहरों में तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं। सुबह बाल्य रूप, दोपहर में युवा रूप और शाम को वृद्ध रूप में मां का मुखमंडल भक्तों को दिखाई देता है। प्रत्येक रूप में माता का दर्शन फलदायी माना जाता है।
यह मंदिर तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र है, जहां बिहार, नेपाल, बांग्लादेश, और बंगाल से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में मधुबनी के राजा नरेन्द्र सिंह देव की पत्नी रानी पद्मावती ने करवाई थी। माना जाता है कि कठिन तपस्या कर महर्षि वशिष्ठ ने मां भगवती को प्रसन्न कर यहां सदेह लाया था, लेकिन एक शर्त के भंग होने पर मां तारा पाषाण रूप में बदल गईं। यहां मां उग्रतारा की प्रतिमा 1.6 मीटर ऊंची है और तीन रूपों में दिखती है: सुबह अलसायी, दोपहर में रौद्र, और शाम में सौम्य।
यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका पुरातात्विक महत्व भी है। मां की पूजा विशेष रूप से चीनाचार पद्धति से की जाती है, जो तांत्रिक परंपरा का एक अंग है।