सुप्रीम कोर्ट में फर्जीवाड़ा मामला, मुजफ्फरपुर की जमीन विवाद में फर्जी वकील और समझौते से हासिल हुआ था आदेश
सुप्रीम कोर्ट में बिहार के मुजफ्फरपुर से जुड़े एक जमीन विवाद में चौंकाने वाला फर्जीवाड़ा सामने आया है। आरोप है कि एक पक्ष ने दूसरे पक्ष की जानकारी के बिना सुप्रीम कोर्ट में फर्जी वकील और समझौता पत्र पेश कर 13 दिसंबर 2024 को आदेश हासिल कर लिया।
हैरानी की बात यह रही कि वास्तव में पीड़ित पक्षकार हरीश जायसवाल को मामले की कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने न तो कोई समझौता किया था और न ही किसी वकील को सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व के लिए अधिकृत किया था। इस गंभीर आरोप के सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच का आदेश देते हुए पूर्व में पारित आदेश को रद्द कर दिया।
यह निर्देश जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने हरीश जायसवाल की ओर से दाखिल अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया।
बेटी ने कोर्ट में किया खुलासा
इस मामले में एक और अहम मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट में दर्ज वकील के नाम पर उनकी बेटी जो खुद वकील हैं, कोर्ट में उपस्थित हुईं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि उनके पिता पिछले पांच वर्षों से वकालत नहीं कर रहे हैं और उन्होंने इस मामले में कोई पैरवी नहीं की है।
पटना हाईकोर्ट समेत तीन अदालतों के फैसले थे जायसवाल के पक्ष में
हरीश जायसवाल के वकीलों ने बताया कि इस जमीन विवाद में निचली अदालत, सेशन कोर्ट, और पटना हाई कोर्ट – तीनों ने ही उनके पक्ष में निर्णय सुनाया था और बिपिन बिहारी सिन्हा की याचिका खारिज कर दी थी।
फिर भी आरोप है कि बिपिन बिहारी ने सुप्रीम कोर्ट में फर्जी दस्तावेज और वकील के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की कि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए जांच के निर्देश
कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए तीन सप्ताह के भीतर जांच कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। साथ ही फर्जी तरीके से प्राप्त आदेश को रद्द कर दिया गया है।
सवाल खड़े करता है पूरा घटनाक्रम
इस पूरे मामले ने न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि किस प्रकार फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए न्याय को प्रभावित करने का प्रयास किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से यह मामला अब जांच के घेरे में है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की उम्मीद जताई जा रही है।
Input : Dainik Jagran