शुक्रवार, 19 अप्रैल को चैत्र मास की पूर्णिमा है। इस दिन हनुमान जयंती मनाई जाएगी। मान्यता है कि हनुमानजी का जन्म त्रेता युग में इसी तिथि पर हुआ था। श्रीरामचरित मानस का पांचवां अध्याय सुंदरकांड है। इस अध्याय का पाठ करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। ये श्रीरामचरित मानस का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला भाग है, क्योंकि इसमें हनुमानजी के बल, बुद्धि, पराक्रम व शौर्य का वर्णन किया गया है।
सुंदरकांड में बताए हैं सफलता के सूत्र
सुंदरकांड में सफलता के कई सूत्र बताए गए हैं। इस अध्याय में हनुमानजी ने बताया है कि सफलता कैसे प्राप्त की जाए, सफलता के साथ और कौन से काम करना चाहिए और सफलता के बाद क्या किया जाए? सुंदरकांड के हर दोहे, चौपाई और शब्द में गहरा आध्यात्म छिपा है, जिससे जीवन की हर समस्या का सामना किया जा सकता है। सुंदरकांड में रावण अपने दरबार में हनुमानजी को मारने का फैसला ले चुका था। जब रावण को इस काम के लिए रोका गया तो उसने पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया।
रावण के दरबार में कहा गया कि – सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।।
रावण हंसकर बोला- ‘अच्छा, तो बंदर को अंग-भंग करके भेज दिया जाए।‘
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई। देखउं मैं तिन्ह कै प्रभुताई।
रावण ने कहा कि जिनकी यानी राम की इसने यानी हनुमान ने बहुत बढ़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता तो देखूं।
इस प्रसंग में रावण और हनुमानजी भय और निर्भयता की स्थिति में खड़े हुए हैं। रावण बार-बार इसीलिए हंसता है, क्योंकि वह अपने भय को छिपाना चाहता है। उसने कहा कि मैं इस वानर के मालिक की ताकत देखना चाहता हूं। श्रीराम का सामर्थ्य देखने के पीछे उसे अपनी मृत्यु दिख रही थी, जबकि हनुमानजी मृत्यु के भय से मुक्त थे।
रावण का चित्त अशांत था, जबकि हनुमानजी चित्त शांत था। वे रावण से वाद-विवाद भी कर रहे थे और आगे की योजना भी बना रहे थे। हमें जीवन में जब भी कोई विशेष काम करना हो तो निर्भय रहना चाहिए और मन को शांत रखना चाहिए। तभी हम सफलता की ओर बढ़ सकते हैं। अशांत मन से किए गए काम में सफलता नहीं मिलती है।
Input : Dainik Bhaskar