देवी-देवताओं की पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व है। शास्त्रों में प्रार्थना प्रार्थना, स्नान, ध्यान, भोग के मंत्रों की तरह ही क्षमायाचना के मंत्र भी बताए गए हैं। पूजा भगवान की आराधना का एक विधान है। हम इस धर्म-कर्म को परंपरा और शास्त्रों के अनुसार पूरा करने का प्रयास करते हैं, लेकिन जाने-अनजाने हम से कोई न कोई भूल हो जाती है। क्षमायाचना इसी भूल को सुधारती है। जब हम अपनी गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगते हैं, तभी पूजा पूरी होती है।

ये क्षमा पूजा में हुई गलतियों के लिए और दैनिक जीवन में किए गए गलत कामों के लिए भी होती है। क्षमा सबसे बड़ा भाव है। जब हम भगवान से क्षमा मांगते हैं, तब पूजा पूरी होती है और भगवान की कृपा मिलती है। क्षमा का ये भाव हमारे अहंकार को मिटाता है। हमें दैनिक जीवन में भी अहंकार को त्यागकर अपनी गलतियों की क्षमा मांगने में देरी नहीं करनी चाहिए। ये इस परंपरा का मूल संदेश है।

पूजा में भगवान से क्षमा मांगने के लिए बोला जाता है ये मंत्र

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।

यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥

इस मंत्र का अर्थ यह है कि हे प्रभु। न मैं आपको बुलाना जानता हूं और न विदा करना। पूजा करना भी नहीं जानता। कृपा करके मुझे क्षमा करें। मुझे न मंत्र याद है और न ही क्रिया। मैं भक्ति करना भी नहीं जानता। यथा संभव पूजा कर रहा हूं, कृपया भूल क्षमा कर इस पूजा को पूर्णता प्रदान करें।

क्षमा मंत्र बोलने की इस परंपरा का आशय यह है भगवान तो हर जगह है। उन्हें न आमंत्रित करना होता है और न विदा करना। यह जरूरी नहीं कि पूजा पूरी तरह से शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार हो, मंत्र और क्रिया दोनों में चूक हो सकती है। इसके बावजूद चूंकि मैं भक्त हूं और पूजा करना चाहता हूं, मुझसे चूक हो सकती है, लेकिन भगवान मुझे क्षमा करें। मेरा अहंकार दूर करें, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं।

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