बच्चों को निजी स्कूलों द्वारा कमीशन के फेर में किताबों की लंबी फेरहिस्त थमा दी जाती है। इस कारण अभिभावकों को निजी स्कूलों में महंगी किताबें खरीदना मजबूरी बन है। स्कूलों द्वारा प्रतिवर्ष बच्चों को किताब की लिस्ट थमा दी जाती है। हर बार सिलेबस में बदलाव बता कर अपने मनमाफिक प्रकाशकों की किताब खरीदनों को बाध्य किया जाता है।
निजी स्कूल संचालकों के द्वारा चिह्नित दुकानों में ही किताब खरीदनी पड़ती है। इतना ही नहीं हर साल किताब की कीमत बढ़ती जा रही है। पिछले एक साल में 15 से 20 प्रतिशत से अधिक किताब की कीमत बढ़ी है। जिसने अभिभावकों की जेब ढ़ीली कर रखी है। वहीं स्टेशनरी सामानों की कीमत में भी 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कॉपी की कीमत भी आसमान छूने लगी है। यह 10 से 50 रुपए की कीमत में बिक रही है।
स्कूल की निजी कॉपी का दाम भी ज्यादा
निजी स्कूल की कॉपी का दाम भी अधिक है। स्कूल का नाम लिखा कॉपी बेच रहे है। खासकर स्कूल की कॉपी खरीदना अनिवार्य कर दिया गया है। जो कॉपी 25 रुपए में मिलती है। वही कॉपी पर स्कूल का नाम होने पर 30 से 40 रूपये में मिलती है।
अभिभावकों की ये है शिकायतें
अभिभावक राजाराम यादव, सुदर्शन प्र. सिंह, अकबर अली सहित अन्य का कहना है कि बच्चे को निजी स्कूल में पढ़ाने पर हजारों रुपये प्रतिमाह खर्च करना पड़ता है। जिसमें नामांकन के बाद हर माह जमा करने वाला स्कूल फीस, ट्यूशन फीस, वाहन भाड़ा, किताब, कॉपी सहित अन्य स्टेशनरी सामानों का खर्च शामिल है। निजी स्कूल में नामांकन फीस देने के बाद हर माह ट्यूशन फीस और किताब व स्टेशनरी सामान का खर्च अलग से लगता है। इसके बाद हर साल नामांकन फीस रिनुअल कराने के लिए भी फीस जमा करना पड़ता है।
25 प्रतिशत को नि:शुल्क शिक्षा का नियम
अधिकार नियम के तहत 25 प्रतिशत कमजोर परिवारों के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का नियम है। नियम मुताबिक निजी स्कूलों मेें हुए नामांकन के 25 प्रतिशत बीपीएल परिवार के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना है। इसके लिए संबंधित स्कूल को प्रति बच्चे की दर से सलाना फीस 54 सौ रूपए शिक्षा विभाग दिये जाने का प्रावधान है। इसके बाद भी जिले में इसका फायदा पूरी तरह कमजोर परिवारों के बच्चे को नहीं मिल रहा है।
एनसीईआरटी की किताबों से नहीं होती हैं पढ़ाई
एनसीईआरटी की पुस्तकों से सिर्फ सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई होती है। निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें उपयोग में नहीं लाई जा रही है। निजी स्कूलों द्वारा एनसीईआरटी की जगह अपने मनपसंद प्रकाशकों की किताब लगाई जाती है। निजी स्कूलों का तर्क है कि बाजार में एनसीईआरटी की किताब उपलब्ध नहीं है। लेकिन एनसीईआरटी की किताब बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि स्कूलों द्वारा किताब नहीं लगाए जाने के कारण वह आर्डर नहीं देते। अगर पूर्व में सूचना दें तो किताब की कमी नहीं रहेगी।
लेखा योजना के डीपीओ मनोज कुमार ने कहा कि निजी स्कूल के द्वारा अभी तक नामांकित बच्चों की सूची जमा नहीं किया गया है। वर्ष 17-18 की राशि भी आई हुई है। निजी स्कूलों के द्वारा सूची दिये जाने के बाद राशि दी जाएगी।
Input : Hindustan