मुजफ्फरपुर में डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चों की जा’न लेने वाले चमकी बुखार के फैलने की असली वजह का अभी तक पता नहीं चल सका है। राज्य सरकार के हाथ पैर फूल चुके हैं और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास अभी तक इस बीमारी के महामारी का रूप लेने के संबंध में कोई ठोस रिपोर्ट नहीं है। सच्चाई यह है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को एक सप्ताह बाद इसकी भयावहता का अहसास हुआ।
एक पखवाड़ा पहले बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से मुलाकात कर स्थिति की जानकारी दी और केंद्रीय मदद की गुहार लगाई। 11 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने स्थिति की समीक्षा की और 12 जून को उच्चस्तरीय विशेषज्ञों के दल को मुजफ्फरपुर पहुंचने का आदेश दिया।
13 जून को पांडेय फिर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से मिले और उन्होंने कोई ठोस कदम उठाने के बजाय राज्य सरकार को लोगों के बीच जागरूकता फैलाने, एनजीओ की मदद लेने, बीमार बच्चों को तत्काल चिकित्सा उपलब्ध कराने और बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जिला प्रशासन को सक्रिय रूप से जोड़ने जैसे सुझाव दिए।
मंगल पांडेय से पहली मुलाकात के छह दिन बाद 15 जून को हर्षवर्धन को भयावहता का अहसास हुआ और उन्होंने खुद मुजफ्फरपुर जाकर हालात का जायजा लेने का फैसला लिया। जाहिर है तब तक बच्चों के हर दिन मरने का सिलसिला जारी रहा।
पांच प्रयोगशाला खोलने का फैसला
16 जून को मुजफ्फरपुर दौरे से लौटने के बाद 17 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने उच्चस्तरीय बैठक बुलाई। जिसमें आइसीएमआर दिल्ली, निमहांस बेंगलुरु, राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय आहार संस्थान हैदराबाद, राष्ट्रीय वायरोलॉजी संस्थान पुणे, राष्ट्रीय महामारी संस्थान चेन्नई और एम्स के विशेषज्ञों की उच्चस्तरीय टीम गठित कर उन्हें मुजफ्फरपुर रवाना करने का फैसला हुआ। इसके साथ ही अलग-अलग जिलों में पांच प्रयोगशाला खोलने का निर्णय लिया गया।
100 बिस्तरों वाला आइसीयू स्थापित करने की घोषणा
यहीं नहीं, मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेमोरियल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल की हालत और बच्चों के इलाज के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव देखकर लौटे हर्षवर्धन ने वहां केंद्र सरकार की मदद से बच्चों के लिए 100 बिस्तरों वाला आइसीयू स्थापित करने की घोषणा की। साथ ही मुजफ्फरपुर में उच्चस्तरीय अनुसंधान केंद्र खोलने का भी फैसला लिया।
18 जून तक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को अहसास हो गया कि चमकी बुखार और उससे बच्चों की मौत के लिए कोई एक वजह जिम्मेदार नहीं है। बल्कि कई चीजें सामूहिक रूप से मिलकर जानलेवा साबित हो रही हैं। इसके बाद एनसीडीसी, एम्स, आइसीएमआर, डब्ल्यूएचओ, सीडीसी, आइएपी, विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय व महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के विशेषज्ञों के साथ-साथ मौसम विज्ञान, पोषण एवं कृषि विज्ञान के विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक बड़ी उच्चस्तरीय समिति के गठन की घोषणा की गई।
यह समिति खास मौसम में खास जगह पर फैलने वाली जानलेवा बीमारी के सभी पहलुओं की जांच कर उनसे निपटने के लिए विस्तृत रिपोर्ट देगी। लेकिन बड़े-बड़े फैसलों और वादों के बीच मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी रहा। इसको लेकर पूरे देश में फैले आक्रोश को देखते हुए 19 जून को दिल्ली के राममनोहर लोहिया, सफदरजंग और लेडी हार्डिग अस्पताल के 10 बाल रोग चिकित्सकों की टीम को मुजफ्फरपुर रवाना किया गया।
16 नोडल टीमें तैनात करने का फैसला
प्रभावित क्षेत्र में बीमारी से पीड़ित लोगों की आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण टीमें भी रवाना की गई। इसके अलावा 10 नई एंबुलेंस और वरिष्ठ डाक्टरों व प्रशासनिक अधिकारियों की 16 नोडल टीमें भी तैनात करने का फैसला हुआ। दावा किया जा रहा है कि हर स्तर पर रोजाना केंद्र से भी निगरानी की जा रही है लेकिन पंद्रह दिन बीत जाने के बाद भी हाथ खाली है।
Input : Dainik Jagran