बिहार के बाहर से शरा’ब पीकर राज्य की सीमा में प्रवेश करने वाले लोग सावधान हो जाएं. अगर आप बिहार की सीमा के बाहर से शरा’ब पीकर आ रहे हैं, तो बिहार पुलिस को पूरा अधिकार है कि वह आपको श’राबबंदी कानून के तहत गि’रफ्तार कर सकती है. इस मामले में आपको शरा’बबंदी कानून के तहत सजा’ का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे ही एक मामले में अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के जज अशोक भूषण और केएम जोसेफ की बेंच ने साल 2016 के एक मामले में आरोपियों को कोई राहत देने से इंकार कर दिया है. इस मामले में आरोपियों ने पटना हाई कोर्ट द्वारा स्थानीय मजिस्ट्रेट के निर्णय को सही ठहराए जाने को चुनौती दी थी. आरोपियों की ओर से उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उन्होंने शराब का सेवन अपनी ‘प्राइवेट गाड़ी’ में बिहार की सीमा के बाहर किया था और वे बिहार में भी अपनी प्राइवेट गाड़ी में सफर कर रहे थे. इस कारण उन्होंने बिहार में शराबबंदी की किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया.
इसके जवाब में बिहार सरकार के वकील ने कहा कि उनकी ‘प्राइवेट गाड़ी’ को एक सार्वजनिक सड़क पर पकड़ा गया है. अगर कोई प्राइवेट गाड़ी किसी सार्वजनिक सड़क पर से गुजर रही हो तो यह नहीं माना जा सकता कि वह आम जनता की पहुंच से बाहर होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील की इस दलील को स्वीकार किया. बेंच ने अपने आदेश में कहा कि मामले में अपीलकर्ता द्वारा यह कहना कि उनकी गाड़ी बिहार मद्य निषेध अधिनियम 2016 के 16 के सेक्शन 2(17 ए) के अंतर्गत परिभाषित किए गए ‘सार्वजनिक जगह’ में नहीं आती है, को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
बेंच ने यह भी कहा कि बिहार मद्य निषेध अधिनियम 2016 के अनुसार अगर कोई भी व्यक्ति बिहार की सीमा से बाहर भी शराब का सेवन करता है और वह बिहार की सीमा में प्रवेश करता है या वह बिहार की सीमा में नशे की हालत में पाया जाता है, उसे इस अधिनियम की धारा 37 बी के तहत आरोपित बनाया जा सकता है. हालांकि बेंच ने अपीलकर्ताओं को स्थानीय मजिस्ट्रेट के समक्ष डिस्चार्ज एप्लीकेशन फाइल करने की छूट दे दी है.
क्या है मामला
25 जून 2016 को बिहार के नवादा जिले में पुलिस ने गिरिडीह की तरफ से आ रही एक निजी गाड़ी को रोका था. इसमें गाड़ी की छानबीन करने के दौरान नशे की हालत में कुछ लोग मिले थे. हालांकि गाड़ी से किसी तरह की शराब बरामद नहीं हुई थी. पुलिस ने सभी को अरेस्ट कर लिया था और उन्हें 2 दिनों तक कस्टडी में रहना पड़ा था.
इस मामले में उन लोगों ने स्थानीय मजिस्ट्रेट के आदेश को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. पटना हाई कोर्ट ने भी अपने आदेश में स्थानीय मजिस्ट्रेट के निर्णय को सही ठहराया था. इसके बाद अपीलकर्ताओं ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसपर आज फैसला सुनाया गया है.
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