बिहार के अलग-अलग जिलो में पिछले साल के जुलाई महीने से ही बिहार प्रशासनिक सुधर मिशन के अंतर्गत संविदा पर कार्यपालक सहायक की नियुक्ति निकलती है. फॉर्म भरने की न्यूनतम अहर्ता होती है, मेट्रिक पास. लेकिन हजारो की तादाद में स्नातक और अंतर स्नातक कर चुके युवा इस पद के लिए फॉर्म भरते है.

यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि हर जिले में आवेदन भरने का समय एक नहीं था, अलग-अलग जिलो में अलग-अलग समय पर फॉर्म भरे जाते है. लेट-लतीफी बिहार वासियों के लिए सामान्य बात है, इसलिए इस पर किसी ने कोई एतराज भी नहीं किया.

बहरहाल, कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट और टाइपिंग जांच की परीक्षा ली जाती है. और काउंसिलिंग होने के बाद अंतिम तौर पर मेघा सूचि/ पैनेल प्रकाशित की जाती है. जिस पैनेल की वैद्यता तीन साल तक होती है यानी अगले 3 साल तक इस पद पर आने वाली रिक्तियों के विरुद्ध नियोजन इसी पैनेल से होगा.

चूँकि, तत्काल हर जिले में पंचायत वार एक-एक कार्यपालक सहायक की नियुक्ति होनी थी. तो कुछ अभ्यर्थियों को नियुक्त भी किया जाता है. और अलग-अलग जिलो के अंतिम मेघासुची में हजारो छात्र इस उम्मीद में रहते है कि जल्द ही उनका नियोजन होगा. इसी बिच बीपीएसएम 8 जुलाई को एक झटके में मीटिंग कर आदेश जारी करता है कि भविष्य में आनेवाली रिक्तियों के विरुद्ध नियोजन की प्रक्रिया अब आउटसोर्सिंग कंपनी बेलट्रॉन के जरिये की जायेगी.

जाहिर है, एक झटके में अपने सपनो पर पानी फिरने और तमाम प्रक्रिया से गुजरने के बाद अंतिम मेघसुची में जगह पाने के बावजूद पैनेल रद्द होने से अभ्यर्थी आक्रोश में है. पिछले 4 दिनो से पटना के गर्दनी बाग़ इलाके में कई अभ्यर्थी इसके खिलाफ विरोध जताने के लिए एकत्रित है. जबकि 5 अभ्यर्थी आमरण अनशन पर बैठे है.

विरोध और धरना प्रदर्शन अन्य जगहों पर भी हो रहा है. लेकिन वो अखबारों और मीडिया में अपनी जगह बनाने में नाकाम है. इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि इनकी लड़ाई किसी मुकाम तक पहुँचती है या उससे पहले ही दम तोड़ देती है.

(जानकारी अभ्यर्थियों से बातचीत पर आधारित)

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