कई नोटिस व वारंट। मगर, प्रदी मिलमारों से करोड़ों रुपये की वसूली नहीं हो पा रही। जब भी सरकार के स्तर से इस मसले पर जवाब मांगा जाता, पदाधिकारी के स्तर से कागजी कार्रवाई दिखा दी जाती। साथ ही, यह मजबूरी भी जताई जाती कि कई बकायेदार दूसरे राज्य व जिलों के हैं। इससे परेशानी होती। मगर, सच्चाई यह है कि जिले के भी बकायेदारों से करोड़ों की वसूली नहीं हो पा रही। यहां तक कि इस मामले में एक राजस्व कर्मचारी पर भी डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक बकाया है। मगर, वे अब भी काम कर रहे हैं।
वारंट को मान लेते कार्रवाई : करोड़ों की राशि की वसूली नहीं होना सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई। इसके बाद पुलिस मुख्यालय स्तर से भी शिकंजा कसा जाने लगा। नतीजा इन मिलरों के खिलाफ वारंट जारी कर दिए गए। नीलामवाद पदाधिकारियों को भेजी गई ताजा रिपोर्ट के अनुसार 20 मिलरों के खिलाफ अब भी वारंट जारी हैं। ये वारंट एक वर्ष पूर्व ही जारी किए गए हैं। इसमें दो मिल मालिक पश्चिम बंगाल के हैं। इसके अलावा दूसरे जिले के पांच मिलर हैं। जिले के विभिन्न थानों के 13 मिलरों पर वारंट हैं। मगर, इस पर कार्रवाई नहीं हो सकी है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि विभाग के स्तर से कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर दूसरे राज्य व जिले का बहाना बनाया जाता। मगर, सवाल है कि जिले में जारी 13 वारंट पर कार्रवाई क्यों नहीं हो पा रही। एक कर्मचारी से भी एक करोड़ 52 लाख रुपये की वसूली की जानी है। मगर, कार्रवाई की जगह वे अब भी काम कर रहे।
सवाल, मिलरों का चयन करने वाले पर कार्रवाई क्यों नहीं : जिले के पदाधिकारियों ने मिलरों को करोड़ों का धान देकर सरकार की गर्दन फंसा दी। क्योंकि, जिन मिलरों का चयन किया गया वे संदेहास्पद थे। कई मिलों का अस्तित्व भी नहीं था। सवाल यह भी उठ रहे कि पश्चिम बंगाल या दूसरे जिले के मिलरों का चयन किस आधार पर किया गया। अब जब हम इन पर कार्रवाई नहीं कर पा रहे तो इसके लिए दोषियों को क्यों नहीं चिह्न्ति किया गया।
76 करोड़ से अधिक की होनी है वसूली : 30 से अधिक प्रमादी मिलरों से 76 करोड़ से अधिक की राशि की वसूली की जानी है। इसमें पश्चिम बंगाल के दो मिलरों से ही दस करोड़ रुपये वसूले जाने हैं।
प्रमादी मिलरों से बकाया राशि की वसूली के आंकड़े में गड़बड़ी को लेकर राज्य खाद्य निगम (एसएफसी) भी सवाल के घेरे में है। जिला प्रबंधक द्वारा 11 जनवरी 2018 को भेजी गई रिपोर्ट में वर्ष 2011-12 में दो करोड़ 34 लाख की वसूली दिखाई गई थी। मगर, इस वर्ष आठ जुलाई को भेजी गई रिपोर्ट में यह राशि एक करोड़ 43 लाख ही है। यानी, 91 लाख रुपये कम। वहीं, 2012-13 की पूर्व रिपोर्ट में चार करोड़ 61 लाख रुपये वसूली बताया गया था। बाद की रिपोर्ट में यह राशि तीन करोड़ 86 लाख बताई गई। यानी, इस वर्ष 75 लाख रुपये कम। दोनों वर्ष मिलाकर एक करोड़ 66 लाख रुपये कम वसूली बताई गई। महाप्रबंधक (वित्त एवं आंतरिक) ने इसे आपत्तिजनक माना था।
Input : Dainik Jagran