पटना. बिहार एनडीए (NDA) में इन दिनों कुछ भी सहज नहीं है, जो कभी हुआ करता था. पिछले कुछ समय से दोनों दलों की ओर से हो रही तीखी बयानबाजी ने बड़े भाई और छोटे भाई के रिश्ते को पूरी तरह सहज कर दिया था. कुछ समय पहले तक आईने की तरह साफ था कि बिहार (Bihar) में जेडीयू (JDU) बड़ा भाई है और बीजेपी (BJP) छोटा भाई, लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद बीजेपी में बड़ा भाई बनने की छटपटाहट सी मची है. इसके लिए उसके नेता हर संभव कोशिश में जुटे हैं.
लेकिन बड़े भाई की भूमिका में रह चुकी जेडीयू (JDU) किसी भी सूरत में छोटा भाई बनने को तैयार नहीं है. यही कारण है कि जिसे अब तक दोस्ती समझा जा रहा है, वह अब मजबूरी का रूप धारण कर चुकी है. और इसी मजबूरी के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या आने वाले दिनों में दोनों ही पार्टियां साथ रहेंगी या अलग हो जाएंगी?
किसी न किसी मुद्दे पर तीखी बयानबाजी
दोनों ही पार्टियों की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि दोनों ही दलों के अलग-अलग रहकर चुनाव लड़ने का तर्जुबा ठीक नहीं रहा है. बीजेपी जेडीयू के बीच आए दिन किसी न किसी मुद्दे पर तीखी बयानबाजी हो रही है. बयानबाजी भी ऐसी कि मानों अब अलग हुए कि तब अलग हुए. इसी बीच रावण दहन के आयोजन ने आग में घी काम किया, जिसमें बीजेपी की ओर से किसी भी स्तर का कोई नेता शामिल नहीं हुआ. यहां तक कि राज्यपाल तक नहीं गए. इसके बाद इस कयास को मजबूती मिलनी शुरू हुई कि अब तो बीजेपी-जेडीयू के अलग होने के रास्ते खुल गए.
लेकिन इसी बीच बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा की दो दिन पहले गिरिराज सिंह को दी गई नसीहत सामने आई कि गठबंधन विरोधी बयानबाजी न करें और गठबंधन धर्म न तोड़ें. उसके बाद से लेकर अब तक गिरिराज सिंह की ओर से किसी तरह का कोई बयान या ट्वीट इस मुद्दे पर नहीं आया है.
जेपी नड्डा की दो दिन पहले की नसीहत
राजनीतिक गलियारों में इसे रावण दहन के आयोजन में बीजेपी की ओर से किसी के शामिल न होने से अचानक मचे बवाल की भरपाई के रूप में देखा जा रहा है. क्योंकि यह देखना भी दिलचस्प है कि जब के.सी. त्यागी ने बीजेपी आलाकमान से गिरिराज सिंह की बयानबाजी पर रोक लगाने की अपील की थी, तब कुछ भी नहीं हुआ, लेकिन जब बवाल मचा तो जेपी नड्डा की नसीहत अचानक सामने आ गई.
बिहार में बीजेपी अकेले दम पर सरकार बनाने में सक्षम: स्वामी
हालांकि इसी बीच बीजेपी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने यह कहते हुए फिर से विवाद को हवा दे दी कि बिहार में बीजेपी अकेले दम पर सरकार बनाने में सक्षम है. राजनीतिक गलियारों में अभी तक साफ नहीं हुआ है कि आखिर इतनी तल्खी क्यों बढ़ी और क्या दोनों पार्टियां साथ रहेंगी? लेकिन इतना जरूर है कि दोनों ही दल इस समय दुविधा में हैं. क्योंकि अगर साथ रहे तो नीतीश कुमार के अलावा कोई दूसरा चेहरा नहीं होगा. अलग हुए तो क्या होगा?
2013 में बीजेपी-जेडीयू जब अलग हो गए
लंबे समय तक चले गठबंधन के बाद जेडीयू ने जून 2013 में बीजेपी से नाता तोड़ा था. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी के प्रचंड लहर में जेडीयू ने अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन अपना बुरा हश्र देख लिया. ठीक वैसे ही जब 2015 के विधानसभा चुनाव के बीजेपी जेडीयू से अलग रही तो उसने भी अपना हश्र देख लिया.
ऐसे में दोनों ही दल के पास विकल्प क्या बचता है. 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ राम विलास पासवान भी थे और उपेन्द्र कुशवाहा भी, लेकिन लालू-नीतीश के कॉम्बिनेशन ने मोदी लहर के बाद भी बीजेपी को अर्श से फर्श पर ला दिया.
अलग भी हुए तो किसके साथ जाएंगे?
वहीं जेडीयू की समस्या यह है कि अगर वे अलग भी हुए तो किसके साथ जाएंगे. आरजेडी में लालू यादव अभी है नहीं. तेजस्वी यादव कहां है, किसी को पता नहीं. बिहार की राजनीति से तो उन्हें मानो कोई वास्ता ही नहीं. कांग्रेस उनके साथ चिपकने को तैयार है, लेकिन कांग्रेस से जेडीयू को फायदा कितना मिलेगा, यह सबको मालूम है. वह किसी तरह नीतीश कुमार के दम पर खुद को खड़ा करने की जुगत में हैं.
ऐसे में जेडीयू-बीजेपी का एक-दूसरे से अलग होना दोनों के लिए ही नुकसानदायक साबित होगा. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि फिलहाल अभी ऐसा ही चलेगा. लेकिन इतना जरूर है कि अब बीजेपी-जेडीयू के बीच दोस्ती सहज नहीं रह गई है बल्कि मजबूरी बनकर रह गई है. दोनों ही पार्टियों के पास अभी कोई ठोस विकल्प नहीं है और जब तक दोनों को कोई रास्ता नहीं मिलेगा तब तक साथ भी रहेंगे लेकिन दूरियां बनाकर.
Input : News18