मुजफ्फरपुर : मै साहू पोखर, शहर के मानसरोवर के रूप में मेरी पहचान है। मेरे आंगन में पहले स्नान-ध्यान और फिर किनारे स्थित मंदिरों में पूजा-पाठ को लोग आते थे। छठ पूजा हो या फिर श्रवणी मेले में थकान दूर करने वाले शिव भक्त हर साल यहां आकर विश्रम करते थे। मेरी पहचान सिर्फ शहर में नहीं, बल्कि देश के विभिन्न कोने से आने वालों में थी। एक समय था जब आप मेरे पानी में अपनी तस्वीर देख सकते थे। निर्मल जल का उपयोग घरेलू काम में कर सकते थे। सुबह हो या शाम परिंदों का कलरव यहां आने वालों के कानों को शीतलता देता था। तब मैं सिर्फ पोखर नहीं था, शहरवासियों का दिल था। लेकिन, यह बीते दिनों की बातें हो गई। आज अपनों की उदासीनता से बीमार हूं। कूड़ा-कचरा एवं नालियों का पानी प्रवाहित कर मेरे पानी को दूषित कर दिया गया है। अब न मेरा मान रहा और न सम्मान। जिंदा हूं, लेकिन बीमार।
मेरा इतिहास ढाई सौ साल पुराना है। वर्ष 1754 में जमींदार भवानी प्रसाद साहू के पुत्र शिव सहाय प्रसाद साहू ने बाबा गरीबनाथ मंदिर से महज चंद कदम की दूरी पर मेरा निर्माण करवाया था। मेरे आंगन में श्रीराम जानकी मंदिर का भी निर्माण कराया था। तब मेरा विस्तार 25 बीघा में था। वर्तमान की बात करें तो मैं जिंदा हूं। मेरे चारों तरफ पक्का घाट भी बना है, लेकिन जर्जर हो चुका है। मेरे आंगन पर लोगों ने कब्जा कर लिया है। आसपास के लोगों ने मुङो धोबी घाट बना दिया है। होटलों, घरों व मोहल्ले का कूड़ा फेंक मुङो गंदा कर दिया गया है।
25 बीघे में हुआ था साहू पोखर का विस्तार कचरा व नाला का गंदा पानी प्रवाहित करने से हो गया प्रदूषित
1754 में कराया गया था पोखर का निर्माण, चारों ओर बना है पक्का घाट, लेकिन अनदेखी के चलते हो गया है जजर्र
Input : Dainik Jagran