महिलाएं मिट्टी से पहले कंकड़-पत्थर चुनकर निकालती हैं. फिर भूसा और पानी मिलाकर मिट्टी को आटे की तरह गूंथकर उसे चूल्हे का आकार देती हैं. इसके बाद इसे धूप में सुखाया जाता है. यह पूरी प्रिक्रिया पुरे नियम के साथ किया जाता है.

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पहली बार चूल्हा बना रही नगमा खातून ने कहा कि हमने सोचा था कि नहीं बिकेगा, लेकिन छठी माई की कृपा से एक बिक गया है. उनकी कृपा रही तो आगे भी चूल्हे बिक जाएंगे.

गांवों में व्रती महिलाएं तो यह कठिन काम भी खुद कर लेती हैं, लेकिन शहरों में समस्या रहती है कि वे मिट्टी और भूसा कहां से लाएं और बनाने के बाद चूल्हे को कहां सुखाएं. ऐसे में पटना की कुछ मुस्लिम महिलाएं उनका काम आसान कर देती हैं. पटना के वीरचन्द्र पटेल पथ, दारोगा राय पथ की ये मुस्लिम महिलाएं सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बन गई हैं. ये मजहब की बंदिशों को तोड़ वर्षों से छठ पूजा के लिए चूल्हा बनती हैं. 15 वर्षों से चूल्हा बनाने वाली मुस्तकीमा खातून इस साल लगभग 250 के चूल्हे बनाई हैं.

चूल्हा बनाने की यह परंपरा आजादी के पहले से चलता आ रहा है. सनिजा खातून का कहना है कि 40 साल पहले मेरे ससुर ने चूल्हा बनाने का काम शुरू किया था, लेकिन अब वो इस दुनिया मे नहीं रहे. इसलिए ससुर के इस काम को संभाल रही हैं. इनका कहना है कि इसमें बनाने में मेहनत काफी लगता है. कीमत उसके अनुरूप नहीं मिलता है, लेकिन छठी माई की कृपा से सभी चुल्हे बिक जाते हैं.

Input  : Zee News

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