कहने को विदेश, लेकिन छठ पर माहौल ऐसा कि पता ही नहीं चलता। लगता है, जैसे बिहार में अपने घर पर छठ मना रही। यह कहना है पिछले नौ साल से कनाडा में रह रहीं वंदिता सिन्हा का। वे वहीं विधि-विधान के साथ छठ व्रत करती हैं। वहां के कुछ स्थानीय लोग भी शामिल होते और प्रसाद ग्रहण करते।
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मोबाइल फोन पर बातचीत में वंदिता ने बताया कि मोतिहारी के मिस्कॉट में उनकी ससुराल है। मुजफ्फरपुर में पिता के साथ रहकर एमडीडीएम व एलएस कॉलेज से पढ़ाई की। पति अनिल सिन्हा कनाडा के टोरंटो में न्यूक्लियर पावर प्लांट में काम करते हैं। शादी के बाद वर्ष 2010 में पति के साथ वहीं चली गई।
सास छठ करती थीं। पहली बार विदेश में छठ व्रत रखने की बात हुई तो मन में घबराहट थी। चिंता इस बात की थी कि पूजन सामग्री, सूप, दउरा, गन्ना व लौकी सहित अन्य सामान कहां मिलेगा? कहां पर छठ करेंगे? लेकिन, जैसे-जैसे पर्व नजदीक आया, सारी परेशानी दूर हो गई। जिस तरह से मुजफ्फरपुर व मोतिहारी में छठ सामग्री की दुकानें सजती हैं, उसी तरह टोरंटो में भी। बड़ी संख्या में भारतीय लोग वहां रहते और छठ करते हैं। इसलिए पता ही नहीं चलता कि देश से बाहर हैं।
गाना गाने को जुटती सोसायटी
वह बताती हैं कि नहाय-खाय से लेकर संध्या अर्घ्य तक घर में छठ गीत का माहौल रहता है। लता पांडेय, कविता, सुमिता सिन्हा और कामनी सहित बिहार एसोसिएशन से जुड़े कई लोग सपरिवार घर आते हैं। ठेकुआ बनाने में गांव की तरह यहां भी सब लोग हाथ बंटाते हैं। घर पर लौकी-चावल का प्रसाद व ठेकुआ खाने के लिए पूरी सोसायटी जुटती है। इसमें वहां के स्थानीय लोग भी होते हैं। पर्व के समापन पर करी-बरी व पकौड़ी खाकर सब जाते हैं। सुमिता बहुत अच्छा गाती हैं। उनके साथ सब मिलकर उगो हो सूरज देव अर्घ्य के बेर… या फिर केरवा जे फरेला घवर सहित अन्य छठ गीत होता है।
Input : Dainik Jagran