मुजफ्फरपुर के चर्चित नवरुणा कां’ड में नया मोड़ सामने आया है. नवरुणा कां’ड में सीबीआई ने आमजन से सहयोग की अपील की है.वही सीबीआई की मदद करने वाले को 10 लाख रुपया बतौर इनाम दिया जाएगा.सीबीआई ने शहर के कई जगहों पर इश्तहार चिपकाया है.जिसके माध्यम से आमजन से नवरुणा कां’ड में मदद करने की अपील की है.
13 साल की नवरुणा का सात साल पहले 18 सितंबर 2012 को आधी रात को घर से कथित तौर पर अपहरण हो गया था. 68 दिनों के बाद नवरुणा की अस्थियां घर से ही सटी गली के नाले से बरामद हुई थीं.नवरुणा अपहरण कांड की जांच शुरू में मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने की. बाद में यह मामला सीआईडी को दिया गया.राष्ट्रीय सुर्खियों में आने के चलते बिहार सरकार दबाव में आ गई. तब जाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश और फिर सुप्रीम कोर्ट के कहने के बाद 14 फ़रवरी 2014 को केस सीबीआई को सौंप दिया गया.पिछले क़रीब पांच साल से इस अपहरण कांड की जांच सीबीआई कर रही है. लेकिन उसकी जांच अभी तक पूरी नहीं हो सकी. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट से a१सीबीआई ने आठ बार मोहलत मांगी.कोर्ट ने सीबीआई को हर दफ़े फटकारा.साथ ही जल्दी से जल्दी जांच पूरी करने को कहा.
उलझा हुआ है नवरुणा केस
सबसे पहले 13 अक्टूबर 2017 को चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत ने सीबीआई की ओर से की गई समय की मांग पर अपने आदेश में कहा कि “जांच के लिए समय मार्च 2018 तक बढ़ाया जाता है. लेकिन ये आखिरी चांस होगा.”फिर अगली सुनवाई अप्रैल 2018 को हुई. इस बार मामला चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा के कोर्ट में मामला नहीं गया. सीबीआई ने केस से जुड़े अन्य मामलों से संबंधित पिटीशन किसी दूसरे कोर्ट में डालकर वहां से और छह महीने का समय ले लिया.
छह महीने बाद फिर से जस्टिस एएम खनविलकर और जस्टिस ए रस्तोगी की अदालत में मामले की सुनवाई हुई. सीबीआई की ओर से फिर से समय मांगा गया. जांच एजेंसी ने इस बार अदालत के सामने दलील रखी कि वे केस के तीन गवाहों/संदिग्धों की ब्रेन मैपिंग और नार्को टेस्ट कराना चाहते हैं.इसलिए तीन महीने और दिए जाने चाहिए. अदालत ने सीबीआई की दलील को स्वीकार करते हुए तीन महीने का समय दे दिया. केस की अगली सुनवाई की तिथि 21 अगस्त 2019 को तय हुई.जस्टिस एएम खनविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की अदालत में 21 अगस्त को सुनवाई हुई. इस केस में अब तक की आख़िरी सुनवाई थी.सीबीआई ने फिर से तीन महीने का समय मांगा. अदालत ने और वक्त दे भी दिया है. अदालती आदेश के अनुसार, तीन महीने के बाद यानी इसी साल नवंबर में समयावधि ख़त्म हो जाएगी.
लेकिन क्या इस बार नवरुणा और उनके माता-पिता को इंसाफ़ मिल पाएगा?
अतुल्य आक्रोश में कहते हैं, “सीबीआई बस इतना बता दे कि मेरी बेटी ज़िंदा है या मर गयी? क्या वो हड्डियां जो सीबीआई ने हमें दिखायी थी, वो मेरी बेटी की हड्डियां थीं? अगर हां तो डीएनए रिपोर्ट क्यों नहीं देती?”सीबीआई ने 11 नवंबर 2016 को नवरुणा के अपहरण के बाद हत्या की पुष्टि करते हुए धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया था.
अतुल्य कहते हैं, “सीबीआई ने मुझे धोखे में रखकर डीएनए टेस्ट करा लिया. पहले सैंपल ले लिया. बाद में हड्डियाँ दिखायीं. जब मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने हड्डियां और खोपड़ी बरामद किया था तब मैंने उसे मानने से इनकार कर दिया था. क्योंकि हड्डी 68 दिनों बाद बरामद हुई थी. और जब फॉरेंसिक की जांच रिपोर्ट आयी तब उसमें कहा गया कि हत्या 15-20 दिन पहले हुई है. क्या 15 से 20 दिन में कोई लाश केवल हड्डी बन सकती है?”
नवरुणा की मां का वर्तमान डीजीपी पर आरोप
नवरुणा की माँ इन सबके पीछे बिहार के मौजूदा डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे पर आरोप लगाते हैं, “ये सब गुप्तेश्वर पांडे करा रहे हैं. वो भू-माफियाओं से मिले हुए थे. उनकी शह पर ही सब कुछ हुआ. लेकिन आज बिहार के डीजीपी बन गए हैं.”
अतुल्य कहते हैं, “जिन गवाहों/संदिग्धों के ब्रेन मैपिंग और नार्को टेस्ट का हवाला देकर सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा था,उनमें से एक गुप्तेश्वर पांडे का भी नाम था.”
वो एक दस्तावेज को दिखाते हुए कहते हैं, “देखिए, मेरे पास यही एक सबूत है गुप्तेश्वर पांडे के ख़िलाफ़. 21 फ़रवरी 2013 की रात उनके क्वार्टर पर गया था. मदद की गुहार लगाई थी. तब उन्होंने इस कागज पर एके उपाध्याय (तत्कालीन एडीजी क्राइम, सीआईडी) का नंबर लिखकर दिया था. लेकिन आपको पता है! जो नंबर उन्होंने दिया था, उससे पहले भी मेरे पास फ़ोन आया था. मैंने उसमें अपनी बेटी की आवाज सुनी थी. बाद में फ़ोन कट गया था.”
“जब दोबारा मैंने कॉल किया तो पता चला कि वो उड़ीसा के किसी जगह का नंबर था. बाद में जब गुप्तेश्वर पांडे के नंबर देने पर दोबारा फ़ोन किया तो एके उपाध्याय ने समय नहीं होने का हवाला देकर बात करने से मना कर दिया. बाद में जब लगाया तब बोला ग़लत नंबर है. ये सारी बात मैंने सीबीआई को भी बताई है. तब तक मेरी बेटी ज़िंदा थी. ये मैं दावे के साथ कह सकता हूं. लेकिन सवाल ये है कि गुप्तेश्वर पांडे ने एके उपाध्याय का नंबर ही क्यों दिया और उसी नंबर से मेरे दोनों सिम नंबर पर कॉल क्यों आया था?”
डीजीपी क्या कहते हैं
इन आरोपों पर डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का कहना है कि उन्हें फंसाया जा रहा है.वो कहते हैं, “मुझे फंसाने में दो लड़के हैं. एक है हेमंत जिसके ख़िलाफ़ मैंने एक बार छेड़खानी के मामले में कार्रवाई की थी. मुझे तो फिर बाद में उससे मतलब नहीं रहा. पर वो मेरे पीछे पड़ा रहा. दूसरा लड़का है अभिषेक रंजन जो नवरुणा की बड़ी बहन नवरूपा के मित्र हैं. वही दिल्ली में रहकर इनका केस भी लड़ रहा है. अब ये दोनों क्यों ऐसा कर रहे हैं मुझे नहीं पता. पर मैं एक बात जरूर कहूंगा कि इन लोगों ने खुद केस में इतनी देरी करवाई.” “पहले को वे डीएनए टेस्ट के लिए मना करते रहे, बाद में डीएनए टेस्ट हो गया तो साबित हो गया कि वो अस्थियां नवरुणा की ही थीं. मैं अभी भी कहूंगा कि नवरुणा की हत्या उसके घरवालों ने ही की थी. जब घर के पास से लाश मिली तो मानने से इनकार कर दिया. जहां तक बात सीबीआई इंट्रोगेशन की है तो मैंने खुद सीबीआई को कहा था, मु़झसे भी पूछताछ करिए. वरना मेरे ऊपर सवाल उठेंगे.”
ज़मीन का विवाद
तत्कालीन सीबीआई इंस्पेक्टर आरपी पांडे उस समय इस मामले में जांच अधिकारी थे. अतुल्य का दावा है कि “अगर वे होते तो अब तक केस का सॉल्यूशन हो चुका होता, लेकिन उन्हें वीआरएस दे दिया गया.”आरपी पांडे कहते हैं, “देरी की वजह एविडेंस जुटाना था. हमारे लिए भी बहुत मुश्किल आई थी. क्योंकि सीबीआई को केस बहुत देर से मिला था करीब दो साल बाद. तब तक एविडेंस सारे इधर-उधर हो चुके थे. हमारे बाद भी लोगों को मुश्किलें आई होंगी. लेकिन मुझे उम्मीद है कि पॉजिटिव रिजल्ट आएगा.”नवरुणा केस की असल जड़ में ज़मीन का एक विवाद था. परिजनों का आरोप है कि भू-माफिया ने उनकी ज़मीन हड़पने की नीयत से अपहरण कराया था. सात कट्ठे की इसी ज़मीन पर अतुल्य चक्रवर्ती का घर है.
अब तक क्या-क्या हुआ
पिछले सात साल के दौरान केस के आठ अनुसंधानकर्ता बने. तीन मुजफ्फरपुर पुलिस के, दो सीआईडी के और तीन सीबीआई के बने.लेकिन जांच कितनी हुई? इसके बारे में कोई नहीं जानता. जब तक मामला पुलिस और सीआईडी तक था, तब तक तो सबको मालूम चल जाता था कि केस में क्या हो रहा है. मगर जब से सीबीआई की जांच शुरू हुई है. किसी को कुछ नहीं मालूम. खुद नवरुणा के माता-पिता यह कहते हैं.
सीबीआई ने जिन सात लोगों को गिरफ्तार किया वे सारे वही भू-माफिया हैं, जिनपर आरोप लगा है. ये नाम हैं रमेश कुमार, सुदीप चक्रवर्ती, श्याम पटेल, शब्बू, बीकू शुक्ला, रमेश अग्रवाल, राकेश सिंह.