बिहार में गंगा किनारे बसे पटना सहित अन्य शहरों में जैव विविधता पार्क बनेंगे। यह पार्क नदी के डूब क्षेत्र (फ्लड प्लेन) में बनाए जाएंगे। यानी बीते सौ साल में आई बाढ़ का पानी जहां तक आया हो। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यह आदेश देते हुए डूब क्षेत्र की जमीन वन विभाग को देने के निर्देश दिए हैं। हालांकि अभी डूब क्षेत्र का चिन्हांकन होना बाकी है। वहीं जनवरी के अंत तक नदी में सीवर और औद्योगिक कचरा सीधे गिरने से रोकने के उपाय न करने पर एक करोड़ रुपये जुर्माना देना होगा।

 

राज्य के 26 शहर गंगा व दूसरी नदियों के सहारे बसे हैं। इन शहरों के सीवर व अन्य कचरा सहित तमाम गंदगी सीधे नदी में गिरती है। गंगा नदी को लेकर पर्यावरणविद् एमसी मेहता ने एनजीटी में रिट (ओए नंबर-200/2014) दायर की थी। वहीं नदियों में प्रदूषण रोकने को कई अन्य मामले भी एनजीटी में विचाराधीन है। ट्रिब्यूनल ने आदेश दिए थे कि नदी किनारे के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में वन विभाग सघन वृक्षारोपण करे। पर्यावरण के संरक्षण के लिए वहां जैव विविधता पार्क विकसित किए जाएं।

अमल की कार्रवाई शुरू : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के क्रम में राज्य सरकार ने अमल की कार्रवाई शुरू की है। राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक हो चुकी है। इसमें तय किया गया कि जल संसाधन विभाग डूब क्षेत्र का चिन्हांकन करे।

आसान नहीं चिन्हांकन : एनजीटी ने बिहार सहित देश के सभी राज्यों के लिए आदेश दिया। मगर बिहार की बात करें तो यहां डूब क्षेत्र का चिन्हांकन आसान नहीं है। पटना से लेकर भागलपुर सहित नदी के दक्षिणी भाग में बसे इलाकों में तो डूब क्षेत्र कुछ हद तक चिन्हित भी है। मगर नदी के उत्तरी भाग में तो कहीं सीमांकन नहीं है। सौ साल में नदियों का बाढ़ क्षेत्र देखा गया तो तमाम इलाके उसी क्षेत्र में बस चुके हैं।

एसटीपी या एटीपी का निर्माण न होने पर सख्ती : नदी में सीवर की गंदगी रोकने को नगर विकास एवं आवास विभाग को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और औद्योगिक कचरा रोकने को उद्योग विभाग को एफुलियंट ट्रीटमेंट प्लांट (एटीपी) बनाने थे। मगर अभी तक एक भी एसटीपी या एटीपी का निर्माण न हो पाने पर एनजीटी ने 25 लाख रुपये जुर्माना भी लगाया है। यह काम जनवरी 2020 तक न हुआ तो एक करोड़ रुपये जुर्माना देना होगा।

क्या है जैव विविधता पार्क

जैव विविधता पार्क एक त्रिस्तरीय लेयर वाला ऐसा पार्क होगा जहां सबसे नीचे घास, फिर झाड़ियां और फिर पेड़-पौधे होंगे। इसमें विभिन्न प्रजातियों के पेड़, ज़ड़ी-बूटियां होंगी। वेटलैंड भी होगा। वहां की परिस्थिति जीव-जंतुओं के साथ जानवरों के लिए भी अनुकूल होगी। नदी किनारे ऐसे पार्क विकसित होने से जहां गंदगी नदी में नहीं जाएगी। डूब क्षेत्र में अतिक्रमण भी रुकेगा।

दिल्ली में यमुना की तर्ज पर विकसित होंगे

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने भी संबंधित विभाग को पत्र भेजकर जमीन उपलब्ध कराने को कहा है। वहीं विभाग के अपर सचिव कंवलजीत सिंह अपनी टीम के साथ दिल्ली स्थित यमुना जैव विविधता पार्क का निरीक्षण भी कर चुके हैं।

लाख का जुर्माना लगा है एसटीपी न बनाने पर

नदी किनारे जैव विविधता पार्क विकसित करने के एनजीटी ने आदेश दिए हैं। डूब क्षेत्र चिन्हांकन के साथ ही हमारी कोशिश है कि बिहार जैसे राज्यों के लिए फ्लड प्लेन को लेकर स्थिति और साफ हो। दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग

Input : Hindustan

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