भारत में पिछले दो सालों में चीनी कंपनियों की बाढ़ सी आ गई है, जो देशी मोबाइल निर्माता कंपनियों के लिए मुसीबत बन गई। दो साल पहले साल 2017 तक देशी मोबाइल निर्माता कंपनी कार्बन का भारत के 10 फीसदी मार्केट पर कब्जा होता था, जबकि रेवेन्यू 3,456 करोड़ रुपए था। हालांकि चालू वित्त वर्ष 2019 तक कंपनी का रेवेन्यू घटकर 1,243 करोड़ रुपए रह गया। साल 2014 तक भारत की बड़े मोबाइल निर्माता कंपनियों में शामिल थी। लेकिन दो साल के भीतर ही कंपनी में कर्मचारियों की संख्या 14 हजार से घटकर 1800 रह गई।

Image result for मुसीबत /सिम कार्ड डिस्ट्रीब्यूटर से बने मोबाइल कंपनी के मालिक, 2 साल में चीनी कंपनियों की एंट्री से बिगड़ा कारोबार

सिम कार्ड डिस्ट्रीब्यूटर से बने मोबाइल कंपनी के मालिक

प्रदीप जैन से बैंग्लोर से कार्बन मोबाइल कंपनी की शुरुआती की थी । प्रदीप साल 1992 में ईगल फ्लैक्स के डिस्ट्रीब्यूटर हुआ करते थे। इसके बाद साल 1995 से 1998 तक एयरटेल के सिम कार्ड डिस्ट्रीब्यूटर और एक्टिवेशन के कारोबार में रहे। इस दौरान नोकिया के साथ भी मिलकर काम किया। फिर साल 2000 से साल 2009 तक प्रदी के डिस्ट्रीब्यूशन किट में सैमसंग, एचटीसी, पैनासोनिक, मोटोरोला जैसी कंपनियां जुड़ गई।

2014 तक कार्बन भारत की बड़ी मोबाइल कंपनियों में शामिल थी

प्रदीप ने साल 2010 में 900 करोड़ रुपए के साथ फीचर फोन की दुनिया में कदम रखा और साल 2012 से 2015 तक सालाना 27 मिलियन फोन बेच डाले। इसके बाद 2014 में कार्बन स्मार्टफोन लॉन्च किया। गौतम गंभीर और वीरेंद्र सहवाग कार्बन मोबाइल के ब्रांड एंबैस्डर रहे। हालांकि साल 2016 से 2019 के बीच चीनी मोबाइल के भारत में आने के बाद कार्बन मोबाइल की बिक्री लगभग खत्म सी हो गई।

Input : Dainik Bhaskar

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