बगहा : बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ आज का नारा है। बगहा के नरईपुर वालों ने तो 70 साल पहले इससे भी बढ़ कर बेटी बसाओ को साकार कर दिया था। यहां के लोगों को बेटियां इस कदर प्यारी हैं कि वे शादी के बाद भी उन्हें नजरों से दूर नहीं होने देते। बेटी-दामाद को पास में ही बसा लेते हैं। 58 परिवारों में से 50 परिवारों के दामाद एक टोले में बसे हैं, जिसका नामकरण ही ‘दामादटोला’ हो गया है। यहां बसे कुछ दामादों ने तो अपने दामादों को भी पास ही बसा लिया है। जब संपत्ति बंटवारे को लेकर भाई-भाई में मुकदमेबाजी हो रही हो, नरईपुर एक मिसाल है। पश्चिम चंपारण के बगहा अनुमंडल के नरईपुर में शादी के बाद बेटी- दामाद को वहीं बसने का प्रस्ताव दिया जाता है। बेटी-दामाद और नाती-नातिन हमेशा नजर के सामने रहें, इसके लिए मां-बाप दामाद को घरजमाई बना लेते हैं। बेटियों के प्यार में ही यहां पूरा दामादटोला बस गया है।
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कई पीढ़ियों से चल रही है घरजमाई की परंपरा
बगहा नगर परिषद के वार्ड-13 में नरईपुर स्थित दमादपुरवा टोला में कुल 58 परिवार रहते हैं। इनमें करीब 50 परिवारों के दामाद इसी गांव में बस गए। बुजुर्ग 70 वर्षीय (गांव के दामाद) चंदर चौधरी बताते हैं, 18 साल की उम्र में शादी हुई थी। ससुर रामदेव चौधरी को अपनी बेटी गोदावरी से बहुत लगाव था। तब उन्होंने घरजमाई बनने का प्रस्ताव रखा। मैंने मान लिया। उन्होंने घर-जमीन दी। तब से मैं यहीं का होकर रह गया। मैंने नौ साल पहले अपनी बेटी उषा की शादी पाडरखाप निवासी रामानंद से की और उसे भी यहीं बसा लिया है। मेरे तीनों बेटों ने खुशी-खुशी बहन-बहनोई को घर-जमीन में हिस्सा दिया है।’
दामादों के यहीं बस जाने के कारण इसका नामकरण दमादपुरवा कर दिया गया है। जब भी किसी लड़की की शादी होती है, दामाद को घरजमाई बनने का ऑफर दिया जाता है। अस्सी फीसदी दामाद इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं। -शांता देवी, दामादटोला की वार्ड पार्षद
दमादपुरवा टोले की 42 वर्षीया मंजू बतातीं हैं, ‘मेरी शादी 20 साल पहले मंगरू यादव से हुई। मेरे पांच भाई हैं। सब ने मिलकर इसी गांव में हमें रहने की जगह दी।’ एक साल पहले ही दामाद बने उमेश पटेल बताते हैं कि उनकी शादी दुलारी से हुयी। ससुर मुखलाल चौधरी ने गांव में रहने की पेशकश की। बेटी से मां-बाप के लगाव के कारण वह मना न कर सके। इसी गांव में रोजी-रोटी की व्यवस्था हो गयी। प्रभावती देवी ने बताया कि 50 वर्ष पहले उनका विवाह हुआ था। कुछ दिन बाद ही पिता ने ससुराल से बुला लिया। वह भी पति के साथ आकर यहीं रहने लगी। मो. मजहर बताते हैं कि उनकी शादी 20 वर्ष पूर्व हुई थी। उसी समय उनके ससुर नेबुल ने नहर के पास जमीन देकर रहने की व्यवस्था कर दी।
Input : Hindustan