निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने नगर निगम में ऑटो टिपर घोटाले के आरोपित मेयर सुरेश कुमार समेत नौ के खिलाफ कोर्ट में ट्रायल शुरू करने के लिए संबंधित विभागों से अनुमति मांगी है। निगरानी के पुलिस अधीक्षक ने इसके लिए बीते 17 जनवरी को आरोपितों के विभागाध्यक्षों को पत्र लिखा है। अब विभागों की अनुमति का इंतजार है। अनुमति मिलते ही कोर्ट में ट्रायल शुरू हो जाएगा। इस पत्र से ऑटो टिपर घोटाले को लेकर एक बार फिर शुक्रवार को निगम में हड़कंप मच गया। आरोपितों के माथे पर चिंता की लकीर खिंच गई है।

मेयर समेत नौ के खिलाफ निगरानी ने ट्रायल की मांगी अनुमति

निगम सूत्रों की मानें तो मेयर के साथ दो तत्कालीन नगर आयुक्तों व अन्य कर्मियों पर कार्रवाई की तलवार लटक गयी है। तत्कालीन नगर आयुक्त रमेश प्रसाद रंजन और तत्कालीन अपर समाहर्ता व प्रभार में रहे नगर आयुक्त डॉ. रंगनाथ चौधरी को लेकर सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव को पत्र भेजा गया है। मेयर के संबंध में नगर विकास व आवास विभाग के सचिव को पत्र भेजा गया है। इसी विभाग से तत्कालीन जेई प्रमोद कुमार पर ट्रायल चलाने की अनुमति मांगी गई है। तत्कालीन कार्यपालक अभियंता बिंदा सिंह व कनीय अभियंता मो. क्यामुद्दीन अंसारी के संबंध में पथ निर्माण विभाग के प्रधान सचिव को पत्र लिखा गया है। वहीं, वर्तमान सहायक अभियंता नंद किशोर ओझा व सहायक अभियंता महेंद्र सिंह को लेकर अपर मुख्य सचिव से अनुमति मांगी गई है।

खास एजेंसी को पहुंचाया था लाभ:

निगरानी थाने में दर्ज एफआईआर में बताया गया कि ऑटो टिपर खरीद में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई थी। निगम प्रशासन ने टेंडर में एक खास एजेंसी को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों की अनदेखी की थी। टेंडर में टिपर की अधिक कीमत रखी गयी थी। बता दें कि तिरहुत ऑटो मोबाइल के प्रतिनिधि की शिकायत पर मामला सामने आया था।

3.8 करोड़ में 50 ऑटो टिपर की खरीद:

डोर टू डोर कूड़ा उठाने के लिए नवंबर 2017 में 3.80 करोड़ में 50 ऑटो टिपर की खरीदारी का टेंडर जारी हुआ था। तिरहुत ऑटोमोबाइल के अलावा पटना की एक कंपनी ने भी निविदा डाली। तिरहुत ऑटो मोबाइल का रेट कम होने के बावजूद पटना की एजेंसी से खरीदारी कर ली गई थी। जनवरी 2018 में 1.5 करोड़ का भुगतान भी कर दिया गया था।

निगरानी थाने में हुई थी एफआईआर:

2018 में ऑटो टिपर घोटाला उजागर हुआ था। मामला निगरानी के पास पहुंचा। निगरानी के एसपी सुबोध कुमार विश्वास को जांच का जिम्मा सौंपा गया था। एसपी ने जांच रिपोर्ट निगरानी को सौंपी थी। निगरानी ने इस रिपोर्ट को नगर विकास विभाग के पास भेजा। नगर विकास विभाग ने पूरी रिपोर्ट के अध्ययन के बाद एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसके बाद निगरानी थाने में एफआईआर दर्ज करायी गयी थी।

निगरानी की कार्रवाई या पत्र के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। इस मामले में पूर्व में जांच हुई थी, सिर्फ इसकी जानकारी है। विभाग से अभी इस संबंध में कोई पत्र नहीं मिला है।

-मनेश कुमार मीणा, नगर आयुक्त

निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की किसी कार्रवाई की मुझे जानकारी नहीं है। पूरे मामले में कोई सत्यतता नहीं है। इस मामले में मुझे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली हुई है।

-सुरेश कुमार, मेयर

Input : Hindustan

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