तेलंगाना प्रदेश के निर्मल जिले में बासर गांव स्थित ज्ञान सरस्वती मंदिर भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। सफेद पत्थरों से निर्मित इस मंदिर के बारे में तरह-तरह की किंवदंतियां प्रचलित हैं। यह मंदिर तेलंगाना (पूर्व में आंध्र प्रदेश) के बासर गांव में दक्षिण की गंगा कहलाने वाली गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। इसमें मां सरस्वती माता की 4 फुट ऊंची भव्य प्रतिमा स्थापित है। यह मूर्ति यहां पद्मासन मुद्रा में हैं। लक्ष्मी जी की भी प्रतिमा यहां विराजमान हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसके एक स्तंभ से संगीत के सातों स्वर सुनाई देते हैं। कोई भी व्यक्ति इस ध्वनि को ध्यानपूर्वक कान लगाकर सुन सकता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, मां सरस्वती के मंदिर से थोड़ी दूरी पर दत्त मंदिर स्थित है, जहां से होते हुए गोदावरी नदी तक एक सुरंग जाती थी, जो अब बंद है।

भारत में वैसे तो सरस्वती माता के कई मंदिर है, लेकिन बासर गांव में स्थित इस मंदिर को सबसे प्राचीन सरस्वती मंदिर माना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर को ऋषि वेदव्यास ने बनाया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां शारदा का निवास दंडकारण्य (वर्तमान के बासर गांव) में माना जाता है। कहते हैं महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास जब महाभारत के बाद मानसिक उलझनों से घिरे थे, तब शांति के लिए तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े। अपने मुनि वृंदों सहित उत्तर भारत की तीर्थयात्रा कर वह दंडकारण्य पहुंचे और गोदावरी नदी के तट पर स्थित इस स्थान पर कुछ समय के लिए रुक गए। यहां उन्हें अपार मानसिक शांति मिली। उसके बाद उन्होंने मां सरस्वती का विग्रह स्थापित कर यहां मंदिर बनवाया।

दूसरी कथा के अनुसार, वाल्मीकि ऋषि ने रामायण लिखने से पहले यहीं मां सरस्वती की आराधना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। उसके बाद रामायण लेखन शुरू किया। इस मंदिर के निकट ही वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि बनी है।

मंदिर में गर्भगृह, गोपुरम, परिक्रमा मार्ग आदि बहुत ही सुंदर हैं। यहां की विशिष्ट धार्मिक रीति अक्षर आराधना कहलाती है। इसमें बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारंभ कराने से पूर्व अक्षराभिषेक हेतु यहां लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है। बासर गांव में 8 तालाब हैं, जिनमें वाल्मीकि तीर्थ, विष्णु तीर्थ, गणेश तीर्थ, पुथा तीर्थ मुख्य तालाब हैं।

 

इतिहासकारों का मानना है कि चालुक्य राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। प्रति वर्ष इस मंदिर में वसंत पंचमी और नवरात्रि जैसे त्योहार धूमधाम से मनाये जाते हैं। हिंदुओं का एक प्रसिद्ध रिवाज ‘अक्षर ज्ञान’ भी इस मंदिर में मनाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू रिवाज है, जो एक बच्चे के जीवन में औपचारिक शिक्षा के प्रारंभ को दर्शाता है। मंदिर के निकट ही महाकाली का एक विशाल मंदिर है और लगभग एक सौ मीटर दूर एक गुफा है। इस गुफा में एक विचित्र अनगढ़ (खुरदुरी) चट्टान है, माना जाता है कि यहां सीता जी के आभूषण रखे थे। पास में ही वेद व्यास गुफा भी है। यह मंदिर मां सरस्वती के पांच शक्तिपीठों में से एक है। यहां प्रत्येक बारह वर्ष पर पुष्कर (पुण्य स्नान) उत्सव का आयोजन किया जाता है।

कैसे पहुंचें: यह मंदिर तेलंगाना-महाराष्ट्र की सीमावर्ती क्षेत्र में बसा है। यहां देश के किसी भी क्षेत्र से आने के लिए रेलवे की सुविधा है। नजदीकी रेलवे स्टेशन विजयनगरम है। वहां से बासर मात्र 3 किलोमीटर है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा हैदराबाद है।

Courtesy : Bajrangbali Singh (Hindustan)

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