प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) आज असम (Assam) के दौरे पर हैं. वो असम के कोकराझार (Kokarajhar) में बोडो समझौते (Bodo Accord) को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत की वहां जबरदस्त तैयारी की गई है. असम के कोकराझार में बोडो समझौते का जश्न मनाया जा रहा है.
बोडो समझौते को मोदी सरकार की बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है. इस समझौते के बाद असम में जारी दशकों से अशांति और हिंसा के खात्मे की उम्मीद की जा रही है. प्रधानमंत्री की मौजूदगी में असम के कोकराझार में इसी कामयाबी का जश्न मनाया जाएगा.
क्या है असम का बोडो समझौता
बोडो अकॉर्ड या बोडो समझौता केंद्र सरकार और असम की बोडो जनजाति से जुड़े कुछ उग्रवादी संगठनों के साथ हुआ है. असम की बोडो जनजाति से जुड़े ये उग्रवादी काफी लंबे अरसे से अलग बोडोलैंड की मांग कर रहे थे. अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर इन्होंने कई बार हिंसक विरोध प्रदर्शन और आगजनी और बम विस्फोट किए. पिछले तीन दशक से असम में अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर उपद्रव हो रहा था.
27 जनवरी 2020 को केंद्र सरकार और बोडो जनजाति के कुछ उग्रवादी संगठनों के साथ एक समझौता हुआ है. इसके बाद माना जा रहा है कि असम में अलग बोडोलैंड की मांग और उससे जुड़ी उग्रवाद की समस्या पर काबू पा लिया गया है. केंद्र सरकार ने बोडो के कई अलगाववादी संगठनों के साथ नया बोडो समझौता किया है. इसमें नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB), ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU), सिविल सोसायटी के लोग और यूनाइटेड बोडो पीपल्स ऑर्गेनाइजेशन (UBPO) शामिल है.
बोडो समझौते में क्या हैअसम के बोडो समझौते को कई उग्रवादी संगठनों को एकसाथ लाकर उन्हें मुख्यधारा में लाने वाला सबसे बड़ा समझौता कहा जा रहा है. इसमें बोडो जनजाति से जुड़े कई संगठन शामिल हैं. इस समझौते को बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन या बीटीआर अकॉर्ड कहा जा रहा है. ये मौजूदा बोडोलैंड टेरिटोरियल एरियाज़ डिस्ट्रिक्ट (BTAD) की जगह लेगा.
बोडो समझौता इसलिए खास है क्योंकि इसमें बोडो जनजाति से जुड़े तकरीबन सभी उग्रवादी संगठनों ने केंद्र सरकार के साथ समझौता किया है. इसमें बोडो उग्रवादी संगठनों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर इलाके के विकास में भागीदार बनने का वचन दिया है.
उग्रवादी संगठनों ने अलग बोडोलैंड की मांग छोड़ दी है. बदले में केंद्र सरकार ने वादा किया है कि वो बोडो क्षेत्र को ज्यादा स्वायत्तता प्रदान करेगी और उसके विकास में केंद्र सरकार का भरपूर योगदान होगा. बोडो जनजाति की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने में केंद्र सरकार पहल करेगी और इस बात पर नजर रखेगी कि इसे किसी तरह का नुकसान न पहुंचे.
समझौते के मुताबिक बोडो इलाके के विकास के लिए असम की सरकार तीन साल में 250 करोड़ रुपये खर्च करेगी. इस दौरान इतनी ही राशि केंद्र सरकार भी इलाके के विकास के लिए देगी. इस समझौते को करवाने में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन का बड़ा हाथ बताया जाता है. केंद्र सरकार के नरम रवैये की वजह से भी ये समझौता संभव हो पाया.
बोडो जनजाति के साथ पहले भी हो चुके हैं समझौते
बोडो उग्रवादियों के साथ पहले भी दो बड़े समझौते हो चुके हैं- 1993 में बोडोलैंड ऑटोनॉमस काउंसिल अकॉर्ड और 2003 में बोडो लिबरेशन टाइगर्स के साथ हुआ समझौता. लेकिन इस बार के समझौते को ज्यादा बड़ा माना जा रहा है. सबसे बड़ी बात है कि उग्रवादी संगठनों ने अलग बोडोलैंड की मांग छोड़ने पर सहमति जताई है. समझौते में कहा गया है कि बोडो संगठनों ने समस्या के व्यापक और अंतिम समाधान पर सहमति जताते हुए असम की अखंडता और एकजुटता पर सहमति जताई है.
इस समझौते के बाद अब बीटीआर के पास ज्यादा विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और आर्थिक अधिकार होंगे. एक रिटायर्ज जज की अगुआई में एक कमीशन का गठन होगा. ये कमीशन बीटीआर से जुड़े मसलों पर फैसले लेगा. इसमें बोडो इलाके के विकास के मैकेनिज्म, बोडो की विभिन्न जनजातियों के विकास और उनकी संस्कृति को बचाए रखने के प्रयासों पर काम होगा.
इसके पहले बीटीआर काउंसिल में 40 सीटें थीं, जिसे बढ़ाकर 60 किया गया है. 60 सीटों में से 16 सीटों को ओपन रखा गया है. इसका मतलब है कि इन सीटों पर गैरजनजाति उम्मीदवार भी चुनाव लड़ सकते हैं. इसके अलावा बीटीआर काउंसिल में 6 नामित सदस्य भी होंगे. इसमें 2 महिला और 2 अब तक काउंसिल से बाहर रहे समुदाय को हिस्सेदारी मिलेगी.
क्या है बोडोलैंड आंदोलन
बोडो असम की सबसे बड़ी जनजाति है, जो असम के उत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में निवास करते हैं. ये अपनेआप को असम के मूल नागरिक बताते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक बोडो राज्य की कुल जनसंख्या में करीब 5 से 6 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. बोडो जनजाति की शिकायत रही है कि उनकी जमीन पर असम के दूसरे लोगों कब्जा कर रखा है. उनकी सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश हुई है.
इसी शिकायत के साथ 1966 में बोडो जनजाति ने प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम (PTCA) नाम से संगठन बनाकर अलग केंद्रीय प्रांत उदयाचल की मांग रख दी. अस्सी के दशक में इन्होंने अपनी मांग को लेकर हिंसक आंदोलन छेड़ दिया. वक्त के साथ अलग बोडोलैंड की मांग उठने लगी और इससे जुड़े कई उग्रवादी संगठन खड़े हो गए. असम में अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर हुए हिंसक आंदोलन में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं.
इनपुट : न्यूज़ 18