आम आदमी और ख़ास आदमी के बीच का साफ फर्क देखना है तो बिहार आपके लिये सटीक जगह होगा, हाल में ही बिहार के एक विधायक जी बच्चों को कोटा से बिहार लाये थे, इसी लिस्ट में मुजफ्फरपुर के नामी नेता और पूर्व पार्षद विजय कुमार झा भी अब शामिल हो गए है, जिन्हे प्रशासन ने स्पेशल पास जारी किया और साहेब की स्कॉर्पियो बिहार से कोटा और कोटा से बिहार दौड़ गयी और उनके बच्चों को ले आयी वापस मुजफ्फरपुर.

सत्ता और नेता के करीब होने का रेवड़ी पूर्व पार्षद को भी मिला है, जहाँ आमलोग के बच्चे अन्य राज्य में फंसे है वही, पूर्व पार्षद विजय झा अपने बच्चों को मुजफ्फरपुर वापस लाने में कामयाब हो गए, वो भी सरकारी पास के साथ, कोटा में बिहार के हजारों बच्चें फंसे है और वो घर आने के लिए बेचैन है मगर बिहार सरकार उन्हें लगातार अनदेखा कर रही है, ऐसे में पूर्व पार्षद विजय झा का आपने बच्चों को कोटा से लाना ग़रीब औऱ रसूखदारों के बीच की खाई को बढ़ाता है और साबित करता है कैसे बिहार सरकार आम आदमी और ख़ास आदमी के बीच भेदभाव को बढ़ाती है.

मुजफ्फरपुर के पूर्व पार्षद द्वारा अपने बच्चों को कोटा से लाने के मामला रौशनी में तब आया जब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर विजय झा स्पेसल पास देने का मामला उजागर किया, और कैसे सरकार आम औऱ खास में फर्क को बढ़ा रही है ये बात सबके सामने लाया. तेजस्वी के ट्वीट बाद हलचल तेज हो गयी है और नीतीश सरकार की फ़जीहत हो रही है.

दरअसल मामला मुजफ्फरपुर के पूर्व पार्षद विजय कुमार झा को लौकडाउन के बीच अपनी बेटी खुशबु कुमारी और अर्पिता ठाकुर को कोटा से लाने का है, मुजफ्फरपुर समाहरणालय ने 11 अप्रैल 2020 को ज्ञापांक 1393 दिनांक 11.4.2020 को कोटा जाने और आने के लिए पास जारी किया , पास में कहा गया है कि विजय कुमार झा के अनुरोध के आलोक में निजी वाहन संख्या-BRO6-PD 5628 स्कॉपियो से मुजफ्फरपुर से कोटा जाने एवं वहां से मुजफ्फरपुर लाने की अनुमति दी जाती है।

पूर्व पार्षद विजय झा ने कोटा से आते ही अपने बच्चों का कोरोना जांच भी कराया, लेक़िन क्या इन्हें अनुमति देना लॉकडाउन के नियमों का धज्जी उड़ाना नही है, मामले को तूल पकड़ता देख मुजफ्फरपुर जिलाधिकारी ने भी स्पस्टीकरण जारी किया और बताया कि लॉकडाउन प्रथम चरण में कोटा में मरीज़ो के मामले कम थे इसलिये जरूरतमंद लोगों को पास जारी किया गया जैसे ही मरीजों की संख्या बढ़ी इसपर रोक लगा दी गयी, लेकिन इनसब के बावजूद वो मध्यमवर्गीय परिवार खुद को असहाय महसूस कर रहे है जिनके बच्चें अब भी कोटा में फंसे है और सरकार उन्हें अनदेखा कर रही है.

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