आईजीआईएमएस में 15 अप्रैल को सारण के एक मरीज को गैस्ट्रो वार्ड में भर्ती किया गया। डॉक्टरों ने जब उसकी जांच की तो पता चला कि मरीज की आंतों में संक्रमण हैं। उसकी तुरंत इंडोस्कोपी कराई गई फिर पेट से मवाद भी निकाला गया। नौ दिनों तक गैस्ट्रो वार्ड में सामान्य मरीजों के साथ हो रहे इलाज के दौरान ही डॉक्टरों को उसमें कोरोना का लक्षण दिखा।

डॉक्टरों ने 23 अप्रैल को कोरोना की जांच के लिए नमूना लिया। नमूना लेने के बाद ही मरीज वार्ड से भाग गया। मरीज के भागने के बाद न तो उसकी तलाश की गई और ना ही पुलिस को इसकी जानकारी दी गई। शुक्रवार की रात जब मरीज की रिपोर्ट में कोरोना की पुष्टि हुई तो हड़कंप मच गया। अस्पताल की चूक से दर्जनों स्वास्थ्यकर्मियों और डॉक्टरों की जान खतरे में पड़ गई। अस्पताल में सामान्य मरीजों के बीच हो रहे इलाज से पूरा वार्ड संक्रमण की जद में है। अस्पताल में नौ दिनों तक मरीज भर्ती रहा। उसके साथ तीमारदार भी थे। इस दौरान उसने कितने लोगों को संक्रमित किया होगा, इसका सुराग लगाना बड़ी चुनौती है।

घटना के बाद अफसरों ने साध ली चुप्पी
कोरोना संक्रमित के भाग जाने की बात सामने आते ही अस्पताल के अधिकारियों ने चुप्पी साध ली है। कोई भी सवालों का सामना करने के लिए आगे नहीं आ रहा है। निदेशक डॉ. एन आर विश्वास ने अपना मोबाइल बंद कर लिया और मेडिकल सुपरिंटेंडेंट मनीष मंडल ने भी फोन उठाना बंद कर दिया। शाम को मनीष मंडल ने भी अपना मोबाइल बंद कर लिया। हालांकि  शनिवार की सुबह संस्थान के सभी प्रशासनिक अफसरों की घंटों बैठक चली है।

एक गलती से कर्मी हो जाते हैं होम क्वारंटाइन
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में लापरवाही का यह पहला मामला नहीं है। दो दिन पूर्व टीबी वार्ड में भर्ती एक मरीज के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद नर्सिंग स्टाफ सहित 18 स्वास्थ्यकर्मियों को 14 दिनों के लिए होम क्वारंटाइन कर दिया गया है। सूत्रों की मानें तो पूर्व में भी एक बार कई डॉक्टर और स्टाफ होम क्वारंटाइन किए गए थे।

Input : Live Hindustan

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