सोनिया गांधी पर पालघर की रिपोर्टिंग करने के दौराण सवाल करना रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के अर्णब गोस्वामी को महंगा साबित हो रहा है. कुछ दिन पहले अर्णब के घर लौटते वक्त बाइक सवार ने उनपर हमला किया था उन आरोपियों को कोर्ट ने बॉन्ड पर जमानत दे दी गई. कल अर्णब गोस्वामी से पुलिस ने 12 घंटे तक पूछताछ किया, ये पूछताछ पालघर मामले में उनके सोनिया गांधी के उपर किये गए टिप्पणी को लेकर था.

हमारा सवाल ये है कि अर्णब की पत्रकारिता का विरोध करने के और भी तरीके हो सकते हैं, लेकिन जब सत्ताओं और पुलिस के जरिए संपादकों को दुरुस्त कराने की परिपाटी चल पड़ेगी तो इसका नतीजा भयंकर होगा.

Two accused of attacking Editor-in-Chief of Republic TV Arnab ...

मीडिया हमेशा से सेल्फ रेगुलेशन की चीज रही है. भारत में और यही इसकी ताकत भी है, लेकिन ऐसे पुलिसिया करवाई से लगता है मीडिया को सत्ता और राजनीतिक दल अपने मन- मुताबित चलाना चाहते है, सवाल करना लोकतांत्रिक है मगर सवाल करने के लिये एक दल विशेष द्वारा पूरे देश में एक पत्रकार के खिलाफ सैकड़ो प्राथमिकी दर्ज करा देना कैसे सही हो सकता है.

अर्णब से सहमति और असहमति अपने जगह पर हो सकती है लेक़िन एक पत्रकार को टॉर्चर करना कभी भी सही नहीं माना जा सकता, और मीडिया को प्रशासन और राजनीतिक दल रेगुलेट करने लगे तो पत्रकारिता का मतलब ही समाप्त हो जाएगा.

प्रेस का बेफिक्र और निडर होकर सवाल करना ही लोकतंत्र की खूबसूरती है. जब पत्रकार को ही शोषित किया जाने लगे तो यह ख़तरा सीधे लोकतंत्र पर होगा, बिना पत्रकारिता के लोकतंत्र में राजनीतिक दल बेलगाम हो जाएंगे.

पुलिस द्वारा अर्णब गोस्वामी को ग्रिल कराए जाने के घटनाक्रम को बतौर पत्रकार हम दुखद, शर्मनाक और अलोकतांत्रिक मानते है, ये बोलने की आज़ादी का दमन है, देश में कई मामले सामने आ रहे है जिसमें अभिव्यक्ति के आज़ादी को कुचला जा रहा है, समय रहते सचेत ना होना भारत में लोकतंत्र के लिये घातक होगा.

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...