एक ऐसा गांव है, जहां सिर्फ महिलाओं की आबादी (Only Women) है और पुरुषों का रहना मना है. कुछ महिलाएं शादीशुदा हैं लेकिन उनके पति गांव के नियम के मुताबिक कहीं और रहते हैं. पूरा प्रशासन (Administration) महिलाओं के हाथ में है और सब दुरुस्त है. इनकी सूझबूझ का अंदाज़ा लगाइए कि फरवरी में जब Corona Virus अमेरिका (US) व यूरोप (Europe) में बड़ा कहर नहीं था, तभी इन महिलाओं ने अपने गांव को क्वारंटाइन कर लिया था यानी बाहर रहने वाले अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को गांव में आने से मना कर दिया था. जानिए कि कहां है यह गांव और क्या है इसकी कहानी.
बेहद खूबसूरत हैं यहां की महिलाएं
जी हां, यह गांव या कस्बा 600 महिलाओं का घर है, जहां हर तरह की व्यवस्था महिलाएं खुद ही करती हैं. मीडिया में इस गांव को लेकर जो जानकारी है, उसके मुताबिक इस गांव की महिलाएं बेहद खूबसूरत हैं और ज़्यादातर कुंवारी हैं. ब्राज़ील के दक्षिण पूर्व में स्थित इस कस्बे का नाम नॉइवा डो कॉर्डिएरो है, जिसका मतलब शावक की दुल्हन होता है.
कैसे रहती हैं शादीशुदा महिलाएं?
इस कस्बे की कुछ महिलाएं शादीशुदा भी हैं लेकिन उनके पति और अगर बेटे 18 साल से ज़्यादा उम्र के हैं तो उन्हें भी इस गांव में रहने की इजाज़त नहीं है, यही यहां का नियम है. शादीशुदा महिलाओं के पतियों को कहीं और जाकर काम करना और रहना होता है और वो सिर्फ वीकेंड पर यहां आ सकते हैं.
मर्द होते तो इतना हसीन न होता गांव?
अगर यहां मर्द होते और उनके कायदे होते तो इस गांव में इतनी खूबसूरती, इतनी अच्छी व्यवस्थाएं और इतनी आत्मीयता नहीं होती. यहां अभी कोई समस्या आती भी है तो महिलाएं मिल जुलकर उसे सुलझा लेती हैं बजाय किसी संघर्ष के. गांव में रहने वाली रॉज़ली फर्नांडीज़ ने यह भी कहा था कि यहां महिलाएं सब कुछ साझा करती हैं, ज़मीन तक. कोई किसी से मुकाबला नहीं करता. सब कुछ सबके लिए है.
कैसे बीतता है वक्त?
इस गांव में महिलाएं खेती से लेकर घर तक के सारे काम संभालती हैं. मिल जुलकर रहने वाली इन महिलाओं ने यहां एक कम्युनिटी हॉल बनाया है, जहां सब मिलकर टीवी देख सकती हैं. कुछ ही वक्त पहले यहां बड़े स्क्रीन वाले टीवी की व्यवस्था की गई. यहां महिलाओं के पास हमेशा बातें करने और गप्पें मारने का वक्त है. एक दूसरे के कपड़े ट्राय करने से लेकर एक दूसरे के बालों और नाखूनों को संवारना इनका शगल होता है.
आखिर कैसे बसा यह गांव?
इस गांव के बसने के पीछे लंबी कहानी है. 1891 में मारिया सेन्हॉरिना डि लीमा के चरित्र पर लांछन लगाकर उसके गांव से निकाल दिया गया था. तब मारिया ने इस जगह पर रहना शुरू किया और छोड़ी गई या अकेली महिलाओं को साथ लेकर महिलाओं का ही एक समुदाय बना लिया. इस तरह इस गांव के बसने की शुरूआत हुई.
क्यों की गई मर्दों से तौबा?
इस गांव में मर्दों की हुकूमत नहीं चलेगी, यह फैसला लेने के पीछे भी लंबी कहानी है. 1940 में एक ईसाई पादरी इस गांव में आया और उसने यहां की एक लड़की से शादी करने के बाद एक चर्च की स्थापना की. इसके बाद उसने पितृसत्तात्मक व्यवस्थाएं करना शुरू किया. महिलाओं के शराब पीने, संगीत सुनने, बाल कटवाने और गर्भनिरोध के उपाय करने जैसे जीवन तरीकों पर पाबंदियां लगाना शुरू कर दीं.
जब 1995 में उस पादरी की मौत हो गई, तब यहां की महिलाओं ने पक्का इरादा किया कि अब कभी यहां किसी मर्द की हुकूमत नहीं चलने दी जाएगी. इसके बाद उस पादरी ने पुरुषवादी सोच के साथ जिस धर्म की व्यवस्था बनाई थी, उसे इन महिलाओं ने सबसे पहले ध्वस्त किया.
लेकिन मर्दो के लिए चाहत तो रही!
इस इरादे के साथ इन महिलाओं ने मर्दों को अपने समुदाय में रहने की शर्तें तय कर लीं. साल 2014 में यह गांव तब दुनिया भर में चर्चित हो गया था, जब यहां की कुछ महिलाओं ने बैचलर पुरुषों से प्यार के लिए अपील की थी. तब 23 वर्षीय नेल्मा ने सोशल मीडिया पर कहा था कि यहां की खूबसूरत महिलाएं पुरुषों के लिए बेकरार हैं. नेल्मा के शब्द कुछ इस तरह थे :
“यहां जिन पुरुषों से हम लड़कियां मिल पाती हैं, या तो वो हमारे रिश्तेदार हैं या फिर शादीशुदा ही हैं. यहां सब एक दूसरे के कज़िन ही हैं. मैंने लंबे समय से किसी पुरुष को किस नहीं किया. हम लड़कियां प्यार और शादी के लिए बेकरार हैं. लेकिन, हम यहां रहना नहीं छोड़ सकते. क्योंकि यहां रहना हमें पसंद है इसलिए एक पति के लिए इस गांव और यहां के नियमों से समझौता नहीं हो सकता.”
मर्दों के लिए शर्तें
इस तरह प्यार की अपील सुनकर कई बैचलर फ्लाइट लेकर या अपनी कार से इस गांव तक पहुंच सकते थे इसलिए नेल्मा ने यह कहकर चेता भी दिया था कि ‘यहां आने वाले मर्दों को हम औरतों की हुकूमत माननी होगी.’ नेल्मा का यह भी कहना था कि ऐसे कई काम हैं, जो महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहतर करती हैं. यही यहां का नियम है कि पुरुष वो सब मानें, जो महिलाएं कहें.
कोरोना के दौर में यह गांव
महिलाओं द्वारा पूरी तरह संचालित इस गांव ने कोरोना के दौर में मिसाल भी कायम की है. ब्राज़ील और दुनिया को संदेश देते हुए यहां की महिलाओं ने न केवल अपने गांव को बाहरी लोगों से सुरक्षित किया बल्कि संक्रमण से बचाव के लिए फेस मास्क बनाए भी और दूसरे शहरों में मदद के तौर पर भेजे भी.
Input : News18
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