प्रधानमंत्री समेत अन्य गण्यमान्यों को भेजने के लिए शाही लीची भेजने की परेशानी कुछ हद तक कम हो गई है। शाही लीची की तलाश में जुटे प्रशासनिक तंत्र की परेशानी को समाप्त किया है उद्यान रत्न से सम्मानित इलाके के चर्चित किसान भोलानाथ झा ने। भोलानाथ झा ने अच्छी गुणवत्ता वाली शाही लीची प्रशासन को उपलब्ध कराई है।

Litchi business in the red in Lucknow after Bihar government ...

किसान श्री झा के बाग से पूर्व में भी पीएम समेत गण्यमान्यों को शाही लीची भेजी जा चुकी है। एसकेएमसीएच के पास स्थित लीची बगान में गुरुवार को आयोजित प्रेस वार्ता ने उद्यान रत्न ने इसकी जानकारी दी। हालांकि, इस दौरान उन्होंने प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल भी उठाए। अनुसंधान केंद्र, कृषि विभाग, उद्यान विभाग और प्रशासन को घेरा। उन्होंने कहा कि इस बार बेमौसम बारिश और लॉकडाउन के चलते लीची किसानों और कारोबारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। वैज्ञानिकों ने भी सही मार्गदर्शन नही दिया। इसके चलते देश-विदेश में मुजफ्फरपुर की पहचान बनी शाही लीची की गुणवत्ता प्रभावित हुई।

इस बार आकार छोटा और मिठास कम रही। लीची में मौजूद ग्लुकोज सूुक्रोज में नही बदल सका। इस पर शोध करने की जरूरत है। शाही लीची इस बार समय के पहले ही बिक गई। हालांकि, इसका दाम नही मिल सका। कहा कि किसानों को हुई इस क्षति का अध्ययन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वे पहले भी लीची टास्क फोर्स की बैठक में क्षति का सर्वे कराने की मांग कर चुके हैं।

Shahi litchi grown in Bihar's Muzaffarpur areas gets GI tag ...

उन्होंने केंद्र और बिहार सरकार से आपदा मद से किसानों की क्षति की भरपाई व बीमा की व्यवस्था कराने की भी मांग की। कहा कि किसान सालोभर लीची की देखभाल करते हैं। इस पर मोटी रकम खर्च होती है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक लीची को खट्टा बताने के तीन दिन बाद ही पूरी तरह तैयार बताते है। और एक दिन में ही लीची का जीवन समाप्त हो जाता है। यह कैसा शोध है। उन्होंने वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर फसल को बचाने के लिए उपाय बताने की मांग की तो केंद्र व राज्य सरकार से एक्शन लेने की अपील की।

उन्होंने पीएम समेत अन्य गण्यमान्योंं को लीची नही भेजे जाने को लेकर प्रशासन और विभाग पर सवाल खड़े किए। कहा कि जब सारे बागों की लीची टूट गई तो सरकारी स्तर पर शाही लीची की तलाश शुरू हुई। जबकि, 28 मई को ही जब शाही लीची भेज दी जानी चाहिए थी।

Input : Dainik Jagran

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